एक ब्रह्मज्ञानी, समग्र सत्य और पूर्ण ब्रह्म को जानने के लिए व्याकुल रहते थे। तर्क असंख्यों उभरते पर समाधान, एक का भी न मिलता। चिन्ता छाई रहती।
एक दिन वे सागर तट पर घूम रहे थे। देखा एक बच्चा हाथ में प्याली लिये निराश बैठा है और उसे इधर-उधर उलटता-पुलटता है।
ब्रह्मज्ञानी ने बच्चे से चिन्ता और प्याली का कारण पूछा- बच्चे ने सहज भाव से कहा- “इस प्याली में समुद्र भरना चाहता हूँ पर वैसा कोई मार्ग दिखता नहीं।”
ब्रह्मज्ञानी उसके भोलेपन पर हँस दिये। बोले, बच्चे यह प्रयत्न छोड़ दो, भला इतना बड़ा समुद्र इतनी छोटी प्याली में कैसे समा पायेगा?
बालक ने हठ छोड़ दिया और घर लौट गया पर ब्रह्मज्ञानी को नया प्रकाश दे गया। भावना में बसने वाला, श्रद्धा से पलने वाला भगवान भला तर्क बुद्धि की प्याली में किस प्रकार समेटा और बिठाया जा सकेगा?