सतयुग में वृषभाचल पर्वत सबसे ऊँचा और दुर्लघ्य माना जाता था। चक्रवर्ती राजा वह माना जाता जो उस पर्वत के सर्वोच्च शिखर पर चढ़ने और वहाँ अपना नाम लिखने में सफलता प्राप्त करता।
चिरकाल में कोई चक्रवर्ती बना न था। इस बार सप्त भूखण्डों पर विजय प्राप्त करके राजा भरत चक्रवर्ती बन रहे थे। पुरातन निर्धारण के अनुसार वृषभाचल के सर्वोच्च शिखर पर उन्हें अपना नाम अंकित करना था।
दुर्गम यात्रा का सरंजाम जुटाया और चढ़ाई करते-करते सोचने लगे कैसे सौभाग्यशाली हैं वे, जो इस पुरुषार्थ का कीर्तिमान स्थापित करेंगे।
नियत स्थान पर पहुँचे तो स्तब्ध रह गये। उस शिखर पर कोई स्थान ही खाली न था। पूर्ववर्ती चक्रवर्तियों के नामावली से वह शिखर पूरी तरह घिरा हुआ था।
भरत का गर्व गल गया और सोचने लगा इस संसार में न जाने कब-कब क्या-क्या होता रहा है। सर्वोच्च कहलाने का अहंकार निरर्थक है।