रंगों का रंग बिरंगा तिलिस्मी संसार

January 1984

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रंगों को साधारणतया सौन्दर्य एवं सज्जा के निमित्त प्रयुक्त किया जाता है। उनके कारण सामान्य वस्तुएँ भी असाधारण एवं आकर्षक लगने लगती हैं। यही कारण है कि बिकने वाले कपड़ों में सफेद के स्थान पर रंगीन अधिक होते हैं। सज्जा के हर प्रयोजन में रंगों का उपयोग किया जाता है। इतने पर भी इस खर्चीले उपक्रम के बारे में यह रहस्य अभी सर्वसाधारण को विदित नहीं हो सका है कि उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ कितना गहरा सम्बन्ध है। अच्छा हो, इस जानकारी से सर्वसाधारण को अवगत कराया जाय और उस कारण होने वाले लाभ तथा हानि के सम्बन्ध में आवश्यक तथ्यों को सर्वसुलभ बनाया जाये।

मैक्सिको विश्वविद्यालय के खेल निर्देशकों ने रंगों का खिलाड़ियों पर पड़ने वाले प्रभाव को जाँचने के लिए बहुत सिर खपाया है। उन्होंने खिलाड़ियों के कपड़े तथा फुटबाल जैसे उपकरणों को भिन्न-भिन्न रंगों में रंगवा कर यह देखा कि इसका हार जीत पर क्या कुछ प्रभाव पड़ता है। इस आधार पर किये गये परीक्षणों से पता चला कि रंग मात्र नेत्रों को ही सुरुचिपूर्ण कुरुचिपूर्ण नहीं लगते, वरन् उनका प्रभाव मानसिक स्थिति पर भी पड़ता है। फलतः हार-जीत के साथ उसका सम्बन्ध जुड़ता है। लाल रंग वाला पक्ष प्रायः शिथिल रहा, जबकि पीला रंग सफलता दिखाता रहा।

शिकागो के खेल निर्देशकों ने खिलाड़ियों की थकान उतारने के लिए रंग से कमरे पुतवाये और उनमें उन्हें ठहराया। मैदान में जाते समय उन्हें नारंगी रंग वाले कमरे में कपड़े बदलने और चाय पीने के लिए बुलाया जाता था। उससे उनमें स्फूर्ति और उत्तेजना का अनुपात बढ़ता पाया गया।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी रंग के प्रभाव रोगियों पर जाँचने के लिए बार-बार परीक्षण किये हैं। उनमें निष्कर्ष निकाला है कि जिन रोगियों को शान्ति एवं शीतलता की आवश्यकता थी, उनके लिए नीले रंग से पुते, नीले पर्दे रंगे कमरे अधिक लाभदायक सिद्ध हुए। मानसिक रोगियों को तो इससे विशेष रूप से राहत मिली।

काले या नीले रंग का प्रभाव जी मिचलाने, चक्कर आने, ऊब लगने जैसा देखा गया है। जिन जलयानों या वायुयानों के कमरे इन रंगों में रंगे थे, उन्हें परेशानी रही। किन्तु जब उनकी रंगाई बदल दी गई तो यात्री प्रसन्नता अनुभव करने लगे। उन्हें उन्हीं कमरों में अधिक अच्छा लगने लगा। पीला रंग विचार शक्ति और स्मरण शक्ति बढ़ाता देखा गया है। विद्यार्थियों के लिए तो वह विशेष रूप से उपयोगी होता है। बुद्धिजीवी वर्ग को विशेषतया हल्के पीले रंग के वस्त्रों तथा उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए। इससे वे उद्विग्न होने से बचे रहेंगे और एकाग्र रहने में सहायता मिलेगी।

रंगों के प्रभाव पर गम्भीर शोध करने वाले हावड फीच का कहना है कि- “उपयुक्त रंग हमें ताजगी, स्फूर्ति प्रदान करते हैं, जबकि अनुपयुक्त रंगों से उद्विग्नता उत्पन्न होती और थकान आती है। आहार में जो महत्व स्वाद का है, वह दृष्टि क्षेत्र में रंगों का। वे मात्र नयनाभिराम ही नहीं होते, वरन् शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी सीधा असर डालते हैं।”

कीच के प्रयोग प्रकाशन में कितनी ही ऐसी घटनाओं का उल्लेख है, जिससे रंगों की प्रभाव क्षमता पर प्रकाश पड़ता है। एक केन्टीन को उनने नीले रंग से पुतवाया, जिससे जलपान के लिए आने वाले आगन्तुक ठंडक लगने की शिकायत करने लगे। जब उसी केन्टीन को उसी ऋतु में नारंगी रंग से रंगवा दिया गया, तो ठंडक लगने की शिकायत दूर हो गई और ग्राहक ऋतु बदलने की चर्चा करने लगे।

एक कारखाने के मजदूर काले डिब्बे उठाने में उनके बहुत भारी होने की शिकायत करते थे। उठाते हुए जल्दी ही थकान भी अनुभव करते थे। पर जब वे पीले रंग से रंगवा दिये गये तो श्रमिकों ने बताया कि उनमें भार कम है और उन्हें ढोते रहने में उन्हें कोई कठिनाई नहीं होती।

लॉस ऐन्जिल्स के डॉक्टर डा. ब्राइट हॉस ने अनेक विद्यार्थी पर उनकी शारीरिक क्षमता एवं बौद्धिक प्रखरता घटाने-बढ़ाने के रंगों का परिणाम जाना है। इसके लिए उन्होंने एक जैसी स्थिति के छात्रों को तीन वर्गों में बाँटकर उन पर लाल नीले और पीले रंग के प्रभावों को देखा। उनने पाया कि आलसी और मन्दबुद्धि वालों में उत्तेजना लाने के लिए लाल रंग अच्छा रहा, जबकि चंचल और आवेश ग्रस्त रहने वालों को नीले रंग से शान्ति मिली। पीले रंग की प्रतिक्रिया उन्होंने मध्यवर्ती पायी। मध्यवर्ग के विद्यार्थी अपनी कुशलता और प्रसन्नता में पीले रंग से अभिवृद्धि होने की बात कहते थे। अधिकाँश को वही रुचिकर भी लगा।

यह प्रयोग कामकाजी व्यापारी वर्ग के लोगों पर भी हुए। उनकी घड़ियाँ ले ली गई और कई रंगों के कमरों में बैठकर वार्त्तालाप करने के लिए उनके कई वर्ग योजनानुसार बिठा दिये गये। लाल रंग वाले कमरों में बैठकर बात करने वालों ने दो घन्टे काटे, पर उन्हें चार घन्टे जितने थकाने वाले लगे। उनमें गर्मी-गर्मी होती रही और किसी निष्कर्ष पर पहुँचे बिना ही उठ गये। उसके विपरीत नीले रंग वालों ने वार्ता के समय को वास्तविक के विपरित आधा बताया। साथ ही वे हँसते-मुस्कुराते बाहर निकले। उनने घनिष्ठता बढ़ाई और दुबारा ऐसे ही मिलन की आवश्यकता बताई। पीले रंग वाले कमरों को समय का अनुभव उतना ही हुआ, जितना कि वस्तुतः बीता था। उनने उतनी ही अवधि में कितनी ही समस्याएँ सुलझाई और कितने ही सौदे पक्के कर लिये। सभी सफलता पर प्रसन्न देखे गये।

एम.जी. हिब्बन ने अपने प्रयोगों में भोजन के रंगों का पाचन पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया है। एक बहुमूल्य व्यंजनों वाले भोज में उनने रंगीन बल्ब इस प्रकार जलाये कि पदार्थों का रंग कुछ से कुछ प्रतीत होने लगा। इसका परिणाम यह हुआ कि मेहमानों की भूख मर गई। मन बदल गया और वे आधी झूठन छोड़कर उठ खड़े हुए। इसके विपरीत उन्होंने एक दूसरी पार्टी नियोजित की, जिसमें सामान्य मूल्य के पदार्थ परोसे गये, किन्तु रंगी प्रकाश ऐसा अच्छा था कि थालियाँ, कटोरियाँ जिन वस्तुओं से सजी थी वे सभी बहुमूल्य और सुस्वादु लगने लगीं। फलतः मेहमानों ने आशा से अधिक खाया और दावत की हर वस्तु को सराहा।

आमतौर से हल्के रंग ही अधिक उपयुक्त पड़ते हैं। गहरे रंगों की प्रतिक्रिया भी गहरी होती है, जो प्रतिकूल पड़ने पर कई बार अधिक हानिकारक भी सिद्ध होती है।

काला रंग गर्म इसलिए माना जाता है कि उसमें ताप सोखने की अधिक शक्ति है। थोड़ी-सी धूप में वह गर्म हो जाता है और उस गर्मी को देर तक अपने में धारण किये रहता है। ठंडे देशों या ठंडे मौसम में उसकी उपयोगिता हो सकती है, किन्तु गर्मी के दिनों में या गर्म देशों में उनका उपयोग हानिकारक ही होता है। मैल छिपाने, धोने के झंझट से बचने के लिए तो गहरे रंगों का उपयोग करना भी बुरा है। इससे गन्दगी से समझौता करने, मैलेपन को सहन करने की बुरी आदत पड़ती है, जो स्वास्थ्य और स्वभाव दोनों के लिए ही अहितकर है।

सर्दी लगने के कारण उत्पन्न हुई बीमारियों का उपचार लाल रंग के उपयोग से हो सकता है। जिन्हें लो ब्लडप्रेशर, जुकाम, सर्दी, छींक, जकड़न आदि की शिकायत हो, उनके लिए लाल रंग के कपड़े, जूते आदि पहनना लाभदायक रहता है।

जिगर तिल्ली की बीमारियों में अपच या दस्त होने की दशा में पीला रंग का उपयोग उत्तम है। इससे हड्डियों की मुलायमी भी दूर होती है और उनके जरा भी चोट से टूट जाने का खतरा नहीं रहता।

गर्मी के कारण उत्पन्न होने वाली बीमारियों में नीले रंग का उपयोग ठीक है। उससे शीतलता अनुभव होती है और शान्ति मिलती है। लू लगने, जलन, बुखार सिर दर्द जैसे उष्णता प्रधान रोगों में नीले रंग की वस्तुओं का उपयोग किया जाय, तो इससे रोग निवारण में सहायता मिलेगी।

रंग हमारे दैनिक जीवन में कई प्रकार के प्रभाव डालते हैं और कई परम्पराओं के प्रतीक बन गये हैं। खुले नीले आकाश के नीचे बैठकर सभी को प्रसन्नता होती है। संसार सुखद प्रतीत होता है। हरे-भरे खेतों में पुष्प उधानों में बैठकर हर कोई शान्ति शीतलता अनुभव करता है। काला रंग मुर्दनी का प्रतीक माना जाता है। वह डरावना भी होता है। शोक प्रदर्शित करने के लिए काले कपड़े पहने और काले पट्टे बाँधे जाते हैं। पीले रंग का अरुणोदय कितना सुहावना लगता है। उषाकाल की नारंगी लालिमा नया उत्साह उभरती और काम में जुटने की उमंग उत्पन्न करती है। इन्द्रधनुष का सुहावना दृश्य देखते-देखते मन नहीं भरता। नाचते मोर के रंग-बिरंगे पंख देखकर रास्ते चलने वालों की गति ठहर जाति है। और उसे देखते ही रहने का जी करता है। उद्विग्न व्यक्ति भी रंग-बिरंगे फूलों के बीच बैठकर नया उल्लास उपलब्ध करता है। उसमें उनकी शोभा सुषमा, सुगन्ध के अतिरिक्त रंगों का उतार-चढ़ाव भी बहुत बड़ा कारण है।

बच्चों और महिलाओं को रंगीन कपड़े पहनने का चाव होता है। खिलौनों से तब तक मन नहीं भरता, जब तक उनका रंग लुभावना न हो। छोटे बच्चों की पुस्तकों में रंगीन चित्रों का होना आवश्यक है। इसके बिना पढ़ने के लिए उनका उत्साह ही नहीं उठता।

कमरे पर्दे, टेबल, क्लॉथ, जूते, चित्र आदि में किन रंगों का समावेश हो? पहनने के कपड़ों और बिस्तरों, कम्बलों को किस रंग का रंगा जाय? इसकी जानकारी सर्वसाधारण को नहीं होती। आमतौर से चटकीले और सुहावने रंग आकर्षक लगते और खरीदे अपनाये जाते हैं। होना यह चाहिए कि रंगों को शोभा सज्जा के लिए ही प्रयुक्त न किया जाय, वरन् उनके प्रभावों, परिणामों को भी ध्यान में रखते हुए प्रयोग किया जाये।

देवताओं के चरणों में पुष्प चढ़ाये जाते हैं। उन्हें पुष्प हारों से सजाया जाता है। स्वागत एवं हर्षोल्लास के समय चौक पूरने, झण्डियाँ लगाने, ध्वजा पताका फहराने, मण्डप बनाने का रिवाज है। उनमें भी रंगों की भरमार होती है। यह सब करते हुए, देखा यह भी जाना चाहिए कि रंगों को व्यक्ति तथा वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है। यह एक ऐसा महत्वपूर्ण विज्ञान है, जिसकी जानकारी रहने पर सामान्य जीवन को अधिक सुखद एवं प्रसन्न बनाया जा सकता है।


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