सुधीर वोस रामकृष्ण परमहंस के मुँह लगे शिष्य थे। वे बिना संकोच के कई बार ऐसी बातें कह बैठते थे जिससे पीछे नीची आँखें करनी पड़ें। एक दिन इन्होंने परमहंस जी से पूछा- “जब आप विवाहित ही हैं तो पत्नी के साथ दाम्पत्ति जीवन का निर्वाह क्यों नहीं करते?
परमहंस गम्भीर हो गये बोलें- “मैं नारी मात्र में मातृशक्ति का दर्शन करता हूँ।” शारदा माता भी उसी समुदाय में से एक है इसलिए मुझे माता तुल्य प्रतीत होती है। माता के साथ दम्पत्ति जीवन कैसे बने। सुधीर ने आँखें नीची कर लीं परमहंस की महानता का पहली बार अनुभव हुआ।