बगदाद के खलीफा हांस रसीद धर्मात्मा और उदार भी थे। कितने ही जरूरतमन्द उनके यहाँ पहुँचते और सहायता पाकर वापस लौटते। इतने पर भी वे पात्र कुपात्र का ध्यान रखते थे।
एक दिन नौजवान फकीर का बाना पहनकर खलीफा के पास धन माँगने पहुँचा। उनने कहा- एक दिन की भीख से क्या काम चलेगा। गुजारे का स्थायी समाधान बन सके तो क्या बुरा है। युवक इसके लिए प्रसन्नतापूर्वक तैयार हो गया। फकीर के पास एक बड़ा-सा पीतल का लौटा था हांस रसीद ने उसे माँग लिया और बेचा तो दो रुपये में बिका। एक रुपये की कुल्हाड़ी और एक रुपये का सत्तू उसे देते हुए कहा- “जंगल से लकड़ी काटो और बेचो। नसीहत के अनुसार काम किया गया। लकड़ी काटने बेचने का धन्धा अपनाकर फकीर उपासना भी करता रहा और स्वावलम्बी बनकर सम्मान पूर्वक दिन गुजारने लगा।