पौधों को संवेदनशील सिद्ध करने वाले जगदीश चन्द्र बसु अपने प्रतिपादन को सही सिद्ध करने के लिए इंग्लैण्ड गये। उनका प्रदर्शन वैज्ञानिकों की भरी सभा में होने वाला था। एक पौधे को इन्जेक्शन लगाकर वे उस विष के कारण पौधे पर होने वाली प्रतिक्रिया सिद्ध करना चाहते थे।
इन्जेक्शन लगाया गया। पर पौधे को कुछ नहीं हुआ। वह जैसे का तैसा बना रहा। इस पर आत्मविश्वासी बसु ने कहा- यदि पौध पर यह इन्जेक्शन काम नहीं कर सकता तो मेरे ऊपर भी नहीं करेगा। यह कहकर इसी जहर की दूसरी सुई अपनी बाँह में लगा ली सभी स्तब्ध थे। जहर का इन्जेक्शन लगाने पर क्या दुर्गति हो सकती है यह सभी जानते थे।
बसु को भी कुछ नहीं हुआ। इस पर इन्जेक्शन की जाँच पड़ताल की गई। पता लगा कि गलती से विष के स्थान पर निर्विष इन्जेक्शन का प्रयोग हो गया है।
दूसरी बार सही सुई लगाई गई। पौधे पर तत्काल प्रतिक्रिया हुई। अपनी खोज वे पूरी गम्भीरता पूर्वक करते थे और प्रतिपादन से पूर्व प्रमाणिकता की भली-भाँति जाँच−पड़ताल कर लेते थे। आत्म-विश्वास इसी कारण उपलब्ध हुआ था।