मन के झरोखे से भविष्य की झाँकी

January 1984

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परामनोविज्ञान के अनुसार विश्व मानस (यूनीवर्सल माइन्ड) एक समग्र विचार सागर है और वैयक्तिक चेतना उसकी अलग-अलग लहरें। जो अलग-अलग दीखते हुए भी परस्पर एक दूसरे से अविच्छिन्न रूप से जुड़ी हुई हैं। इस चेतना के विराट् सागर में उठने वाली विचार तरंगें एक कोने से उठकर समूचे सागर में फैल जाती हैं। घटनाओं का सूक्ष्म स्वरूप इसी महासागर में पहले तैयार होता तथा पकता रहता है। सूक्ष्मदर्शी इसी से सम्पर्क स्थापित कर भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पता लगा लेते हैं। भविष्य ही नहीं भूत और वर्तमान की घटनाओं का सूक्ष्म स्वरूप सूक्ष्म जगत में बना रहता है। भविष्य की भाँति ‘भूत’ का भी पता लगाया जा सकता है।

समग्र भविष्य भूत दर्शन की क्षमता तो दिव्यदृष्टि सम्पन्न किन्हीं-किन्हीं व्यक्तियों को प्राप्त होती है पर भविष्य दर्शन का एक छोटा अनुभव प्रायः हर व्यक्ति को स्वप्नों आदि के माध्यम से कभी न कभी प्राप्त होता है। जिन व्यक्तियों अथवा वस्तुओं से अपनापन जुड़ा होता है प्रायः भावी संकेत उन्हीं से सम्बन्धित होते हैं। स्वप्नों में सचेतन मन के सो जाने पर अचेतन अपने से जुड़े व्यक्तियों एवं वस्तुओं के इर्द-गिर्द घूमता रहता है उससे जुड़े घटनाक्रमों का पूर्वाभास भी उसे मिल जाता है। जिनका मन अधिक संवेदनशील निश्छल और पवित्र होता है उन्हें जागृत अवस्था में भी सुदूर सगे-सम्बन्धी जिनसे आत्मीयता जुड़ी रहती है से सम्बन्धित घटनाक्रमों का पूर्व बोध हो जाता है। समाचार पत्रों में पूर्वाभास दुरानुभूति, दूरदर्शन से सम्बन्धित अनेकों घटनाएँ समय-समय पर प्रकाशित होती रहती हैं। जिसे पढ़कर आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है तथा यह मानना पड़ता है कि अदृश्य जगत तथा अदृश्य घटनाक्रमों की पूर्व जानकारी प्राप्त करने की सामर्थ्य मानवी मन की अचेतन परतों में प्रसुप्त स्थिति में विद्यमान है।

प्रसिद्ध अंग्रेजी पत्र ‘न्यू टाइम्स’ में एक घटना का उल्लेख इस प्रकार था व्यूचैम्प नामक एक बारह वर्षीय लड़की विक्टोरिया स्टेशन पर मेन्स्टन सिटी जाने वाली ट्रेन की बैठी प्रतीक्षा कर रही थी। साथ में उसके माता-पिता भी थे। अचानक वह अपनी माँ से बोली “माँ! मुझे ऐसा लगता है कोई बड़ी दुर्घटना होने वाली है। मेरा मन कहता है कि यात्रा रद्द कर देना चाहिए। माता-पिता ने इसे पहले लड़की के मन का वहम माना पर बारम्बार आग्रह किये जाने पर उन्होंने अपनी यात्रा निरस्त करनी पड़ी। दूसरे दिन जाने की योजना बनी। अभी वे लड़की सहित घर पहुँचे ही थे कि सूचना मिली कि जिस ट्रेन से उन्हें यात्रा करनी थी वह स्टेशन से कुछ ही किलोमीटर आगे पड़ने वाली एक नदी में दुर्घटनाग्रस्त होकर गिर पड़ी। एक भी व्यक्ति जीवित नहीं बचा।

अमेरिका के बोस्टन शहर में जैक सुलीवान नामक एक मजदूर खाइयों में लगे पानी के पाइप ठीक करने का काम करता था। एक दिन वाशिंगटन स्ट्रीट पर अकेले ही खाई में बेल्डिंग का काम कर रहा था। तभी खाइयों को बन्द करने वाला एक दस्ता आया और बिना भीतर देखे खाई को बन्द करके चलता बना। सुल्लीवान उसी खाई में दब गया और जीवन मृत्यु के झूले में झूलने लगा। उस स्थान से पाँच मील दूर उसका एक घनिष्ठ मित्र वेल्डरटामी विकटर रहता था। उसे अचानक बोध हुआ कि उसका मित्र सुल्लीवान खतरे में है तथा खाई में दब गया है। वाशिंगटन स्ट्रीट पर शीघ्राति शीघ्र पहुँचने की बारम्बार भीतर से प्रेरणा उठने पर वह चल पड़ा। वहाँ जाकर देखा कि सचमुच ही सुल्लीवान खाई में दबा पड़ा है जीवन की अन्तिम घड़ियाँ गिन रहा था। कुछ मिनट का ओर विलम्ब हो जाता तो शायद उसे बचा सकना सम्भव नहीं हो पाता।

जर्मनी में अपने समय की प्रख्यात मनोचिकित्सक मेडम डि फेरीम ने सन् 1896 ने अनायास बैठे-बैठे एक हृदय विदारक दृश्य देखा जो एक खान दुर्घटना से सम्बन्धित था। दृश्य यह था कि क्रिसमस के दिन चैकोस्लोवाकिया के ब्रुक्स के पास डस्क स्थित कोयले की खान में एक भयंकर विस्फोट होता है और सैकड़ों लोग पहले भूरे और बाद में काले रंग में बदल जाते हैं। हजारों लोग घायल अवस्था में पड़े कराह रहे होते हैं जिन्हें उपचारार्थ अस्पतालों, चिकित्सालयों में भर्ती किया जाता है। दुर्घटनाग्रस्त सभी लोग बोहेमियन जाति के हैं। “उन्होंने इस घटनाक्रम को एक समाचार पत्र के सम्पादक को नोट करा दिया। तीन वर्ष बाद 1899 में उस जर्मन समाचार पत्र ने मेडम फेरीम के इस पूर्वाभास को एक कथानक रूप में प्रकाशित किया। अगले वर्ष 1900 ई. में यह घटना सत्य साबित हुई। चैकोस्लोवाकिया में ब्रुक्स के समीपस्थ डस्स की एक कोयला खान में हुए एक विस्फोट से सैकड़ों लोग काल कलवित हो गये और हजारों व्यक्ति, जिनमें महिलाएँ और बच्चे भी सम्मिलित थे-घायल हो गये।

रीडर्स डायजेस्ट (अप्रैल 1965) में प्रकाशित एक घटना के अनुसार सैम बैन्जोन नामक एक बच्चे ने ओहायो में अपनी माँ से कहा कि जिस ट्राम से पिताजी आ रहे हैं वह दुर्घटनाग्रस्त हो गई है तथा वे घायल अवस्था में पड़े हैं। माँ इस अशुभ बात के लिए डाँटकर चुप कर दिया। पर कुछ घन्टे बीते होंगे कि कुछ व्यक्ति घायल अवस्था में सैम बैन्जोन के पिता को लेकर पहुँचे। उसकी माँ यह देखकर आवाक् रह गई कि बच्चे का पूर्व कथन शत-प्रतिशत सही निकला।

“बियॉण्ड टेलीपैथी” पुस्तक में प्रसिद्ध परामनोवैज्ञानिक डॉ. एण्डरीना पुहरिच ने ऐसी अनेकों घटनाओं का संकलन किया है। एक घटना इस प्रकार है- सालिनांस (कैलीफोर्निया) निवासी एक महिला श्रीमती हायेस का पुत्र दूरवर्ती एक नगर में काम करता था। अचानक उन्हें बोध हुआ कि उनका पुत्र जान हायेस एक कार दुर्घटना में घायल पड़ा है। अपने पति से वास्तविकता का पता लगाने के लिए आग्रह किया। खोजबीन करने पर ज्ञात हुआ कि ठीक उसी समय जब श्रीमती हायेस को दुर्घटना का पूर्व संकेत मिला था तभी जान हायेस की कार एक दूसरी कार से टकरा गई। दुर्घटना में उसे गम्भीर चोटें आयी।

सरविंस्टन चर्चिल जो द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन के लौह पुरुष के रूप में ख्याति प्राप्त प्रधानमन्त्री रहे हैं के विषय में कई ऐसी घटनाएँ प्रकाशित हुई हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि भविष्य में सम्भाव्य घटनाओं को उनके मन का एन्टेना पहले ही पकड़ लेता था। ऐसे ही एकबार वे अवसर अरुणोदय होने से पूर्व दूरस्थ टुकड़ियों को निरीक्षण करने के उद्देश्य से समीप खड़ी अपनी कार पर बैठने जा रहे थे। कार का दरवाजा खोलते ही उन्हें अपने अन्तः से आवाज सुनाई दी कि अभी कार में दायीं ओर बैठना सिर पर खतरा मोल लेना है। चर्चिल ने सीट बदल ली और बायीं ओर बैठकर स्वयं ही कार ड्राइव करने लगे। कार अन्धेरी सड़क पर तेजी से जा रही थी। कुछ ही मिनटों में कार के दायीं ओर एक बम दुश्मन के खेमे की ओर से आकर फट गया और कार की खिड़की का दाहिना हिस्सा चकनाचूर हो गया। चर्चिल बच गये और कार तेजी से दौड़ाते हुए सुरक्षित स्थान पर पहुँच गये।

ये सारे घटनाक्रम साधारण से लेकर सामर्थ्य सम्पन्न व्यक्तियों के जीवन से सम्बन्धित हैं और एक ही तथ्य का रहस्योद्घाटन करते हैं। मन के विशाल सागर में सतत् जो तरंगें उफनती रहती हैं, उनमें भवितव्य की घटनाएँ भी निहित होती हैं। अध्यात्म मान्यता भी यही है कि व्यष्टिमन समष्टिगत ब्राह्मी चेतना का एक अविच्छिन्न घटक है- उस समुद्र की एक बूँद है। जानकारी भर तक सीमित रहने वाला तर्क प्रधान मन तो बाहरी परत भर है। अविज्ञात एक क्षेत्र मन का ऐसा भी है जिसे उभारा विकसित किया जा सके तो दिव्य अतीन्द्रिय सामर्थ्यों से सम्पन्न बना जा सकता है। साधना उपचार के अवलम्बन हेतु इसी कारण निर्देश दिये जाते हैं ताकि ये मात्र कौतूहल तक सीमित न रहकर मानव समुदाय के लिये हितकारी भी हो।


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