राजमहल में एक सन्त पधारे (kahani)

January 1984

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक राजा था। राजमहल में एक सन्त पधारे। राजा ने अपना महल, शस्त्रागार, खजाना, वैभव आदि सभी गर्वपूर्वक दिखाया। सबसे पीछे वे उस तिजोरी के पास ले गये, जिसमें बहुमूल्य रत्न भरे पड़े थे।

सन्त ने अनजानों की तरह पूछा- भला इन रत्नों से आपका क्या प्रयोजन सधता है? क्या लाभ मिलता है ?

राजा ने कहा लाभ तो कुछ नहीं उलटे रखवाली पर खर्च उठाना पड़ता है।

सन्त ने कहा- इन्हें बेचकर आटा पीसने की चक्कियाँ खरीद कर प्रजाजनों को बँटवा दें। बन्द पत्थरों की तुलना में चलने और कुछ कमाने वाले पत्थर अधिक उपयोगी रहेंगे।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles