प्रतिभा का आयु से क्या सम्बन्ध?

January 1984

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शारीरिक परिपक्वता की आयु सीमा निर्धारित है। प्रायः बीस वर्ष की आयु तक हर व्यक्ति वयस्क हो जाता है। पच्चीस से तीस की आयु वालों को शारीरिक दृष्टि से परिपक्व माना जाता है। प्रौढ़ता की अवधि इसके बाद शुरू होती है तथा लगभग चालीस तक चलती है। आयुष्य से जुड़े शारीरिक सम्बन्धों का यह मोटा विभाजन है। पर मानसिक दृष्टि से कितनी आयु वालों को परिपक्व माना जाय, निर्धारण में कठिनाई यहाँ आती है। कितने ही व्यक्ति ऐसे होते हैं जो लम्बी आयु के बाद भी बचकानी हरकतें करते रहते हैं, कितनों का बचपन जीवनपर्यन्त नहीं समाप्त होता तथा ऐसे आचरण प्रस्तुत करते रहते हैं, जिसमें उनकी नादानी ही झलकती है। जबकि कुछ ऐसे भी देखे जाते हैं जो अल्पायु में ही प्रौढ़ों का कान काटते हैं। अद्भुत सूझबूझ का परिचय देते तथा बड़े दायित्व निभाते पाये गये हैं। बुद्धिमत्ता, योग्यता एवं प्रतिभा का भी सुनिश्चित, सीमा सम्बन्ध आयु से नहीं दिखायी पड़ता। मनःशास्त्रियों द्वारा निर्धारित पैमाने भी सम्बन्धित विषय पर स्पष्ट तथा विस्तृत व्याख्या नहीं कर पाते।

मानसिक परिपक्वता की जाँच के लिए प्रचलित तरीका है- बुद्धिलब्धि का परीक्षण। परीक्षण पद्धति के अनुसार बालक की मानसिक आयु में उसके वास्तविक उम्र से भाग दिया जाता तथा प्राप्त अंक को 100 से गुणा कर दिया जाता है। इस तरह यदि किसी बच्चे की मानसिक आयु 10 तथा वास्तविक आयु भी 10 हो तो बुद्धिलब्धि 100 होगा। औसत बुद्धिलब्धि भी 100 मानी गयी है। अपनी आयु से अधिक प्रतिभा का परिचय देने वाले बच्चे की मानसिक आयु अधिक होती है। यदि एक बालक की शारीरिक आयु 10 वर्ष तथा मानसिक आयु 15 वर्ष हो, उसका आई.क्यू. 150 होगा। मनःशास्त्रियों ने जो सर्वेक्षण एवं परीक्षण किये हैं, उसका निष्कर्ष है कि कुल जनसंख्या में दो प्रतिशत लोगों की बुद्धिलब्धि इस स्तर की होती है। अपवाद के रूप में थोड़े से व्यक्ति ऐसे पाये गये हैं जिनकी बुद्धिलब्धि 200 तक थी। सामान्य वयस्क 100 से 150 बुद्धिलब्धि सीमा के भीतर आते हैं। 100 से कम को मानसिक दृष्टि से अविकसित तथा 150 से अधिक को ‘सुपर’ माना जाता है।

मनःशास्त्र द्वारा बौद्धिक क्षमता मापने का यह मोटा निर्धारण है जिनके आधार पर लोगों की प्रतिभा मालूम की जाती है। पर बौद्धिक क्षमता मापने का यह सिद्धान्त अपूर्ण है। ऐसे अगणित प्रमाण भी मिले हैं जिसमें मानसिक प्रखरता के उपरोक्त कसौटियों पर अनेकों व्यक्ति खरे नहीं उतरे पर गम्भीरता से अध्ययन करने पर वे असाधारण प्रतिभा के धनी निकले। मूर्धन्य वैज्ञानिक सापेक्षवाद के आविष्कारक आइन्स्टीन विद्यार्थी जीवन में मन्दबुद्धि वाले माने जाते थे। एक दिन उन्हें विद्यालय से निष्कासित भी कर दिया गया। कारण था क्लास में हाजिर जवाबी का अभाव। विषयों, प्रश्नों की गहराई में वे इस हद तक चले जाते थे कि तुरन्त उत्तर नहीं सूझता था। अध्यापक तथा विद्यार्थीगण इसी कारण उनकी क्षमता का मूल्याँकन नहीं कर पाते। पर सभी जानते हैं कि आरम्भ में मन्दबुद्धि समझा जाने वाला यह बालक इतिहास प्रसिद्ध वैज्ञानिक बना, जिसकी बुद्धि का लोहा सभी मानते हैं।

विलक्षण प्रतिभा के ऐसे अगणित प्रमाण मिले हैं जिनका कोई सीधा सम्बन्ध बुद्धिलब्धि (इन्टेलिजेन्स क्वोशेण्ट) से नहीं है। वह मान्यता भी पुरानी पड़ती जा रही है कि प्रतिभा प्रकृति प्रदत्त एक स्थायी जन्मजात अनुदान है। “इन्टेलिजेन्स कैन वी टॉट” पुस्तक के लेखक आर्थर लिण्डा के अनुसार कई व्यक्तियों में उनके जीवन के दौरान आई.क्यू. स्तर बढ़ता देखा गया है जबकि स्कूल में आई.क्यू.परीक्षण के आधार पर अति मेधावी घोषित छात्र आगे चलकर निष्फल सिद्ध हुए हैं। प्रतिभा के मनोवैज्ञानिक परीक्षणों को चुनौती देने वाले ऐसे उदाहरण भी हैं जो बताते हैं कि यह पद्धति कितनी अपूर्ण और एकाँगी है। घोषित मन्दबुद्धि पर अद्भुत मेधा सम्पन्न व्यक्तियों के प्रमाण इस क्षेत्र में नये सिरे से सोचने तथा अनुसंधान करने की प्रेरणा देते हैं।

न्यूयार्क में 1636 को भ्रूण के परिपक्व होने के तीन माह पूर्व ही जुड़वे बच्चों ने जन्म लिया। नाम पड़ा चार्ल्स और जार्ज। तीन वर्ष की आयु में उनका बौद्धिक परीक्षण किया गया। परीक्षण कर्त्ताओं ने उन्हें मन्द मति का घोषित किया गया। इनकी आई.क्यू. 60 से 70 के बीच थी जो सामान्य से भी कम थी। न्यूयार्क स्टेट साइकेट्रिक इन्स्टीट्यूट के डा. विलियम हार्विज ने सन् 1963 में इस युग्म का परीक्षण किया। उन्हें इनमें विलक्षणता का आभास मिला। उन्होंने जार्ज से एक जन्म तिथि बताकर उस पर पड़े दिन तथा उस क्रम में आगे पड़ने वाले विभिन्न तारीखों तथा दिनों का ब्यौरा पूछा। कुछ ही सेकेण्ड में उनसे सही-सही विवरण प्रस्तुत कर दिया सैकड़ों हजारों वर्ष पूर्व अमुक दिन को कौन सी तारीख तथा माह था पूछे जाने पर बिना अधिक समय लगाये चार्ल्स तथा जार्ज दोनों ही बता देते थे। आने वाले सैकड़ों वर्षों बाद की जानकारियाँ भी शत-प्रतिशत सही देते थे। जबकि उन्हें कैलेण्डर के नियमों का कुछ भी ज्ञान न था। लम्बे समय तक डॉ. हार्विज कारणों की खोजबीन करते रहे पर विलक्षणता का रहस्योद्घाटन न हो सका। अन्ततः वे यह कहकर चुप हो गये कि “प्रतिभा के अविज्ञात स्रोत मानव मस्तिष्क में विद्यमान हैं जिसकी कोई जानकारी विज्ञान एवं मनोविज्ञान को नहीं है।”

इंग्लैण्ड का जेडेदिया बक्सन नामक व्यक्ति भी चार्ल्स, जार्ज की तरह ही अद्भुत मेधा का धनी था। बचपन में वह इतना मूर्ख समझा जाता था कि उसके माता-पिता ने पढ़ाना ही उचित न समझा। अक्षर ज्ञान की भी उसे शिक्षा न मिली। पर आश्चर्य यह कि कुछ ही वर्षों बाद वह गणित के जटिल प्रश्नों को हल करने लगा। उसकी स्मृति विलक्षण थी। एक बार वह थियेटर में ड्रामा देख रहा था। एक घन्टे के भीतर अभिनेता ने जितने संवाद बोले, उनके शब्दों की सही संख्या तथा नर्तकी द्वारा नृत्य में उठाये गये कदमों की कुल संख्या बताकर उसने सबको आश्चर्यचकित कर दिया। जुबान पर सभी संवाद ऐसे रटे जान पड़ रहे थे जैसे कि उनका पूर्ववत् अभ्यास किया गया हो। प्रमाणिकता की परीक्षा कितनी ही बार विशेषज्ञों द्वारा की गयी, पर हर बार उन्हें ‘बक्सन’ की प्रतिभा का लोहा मानना पड़ा। एक बार उसे 364, 364, 364, 364, 364 जैसी संख्या का एक साथ गुणा करने को दिया गया। एक मिनट में ही उसने सही गुणा करके सबको हैरत में डाल दिया। उल्लेखनीय बात यह थी उसे गणित के आधुनिक नियमों का आरम्भिक ज्ञान तक न था।

अपने परीक्षण के दौरान डॉ. डी.सी. रीफ तथा एल.एच. स्नीडर ने एक ऐसे व्यक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया जो 4 अंकों के वर्गमूल तथा 6 अंकों के घनमूल को क्रमशः चार सेकेण्ड तथा छः सेकेण्ड में हल कर देता था। यह घटना सन् 1931 की है।

1970 में डेविड एस.विस्कोट नामक एक विद्वान ने बोस्टन की एक महिला हैरियर का अध्ययन किया। वह विलक्षण प्रतिभा की धनी निकली। मोजार्ट, वीथोवन स्कवर्ट, डेबूसी, प्रोकोफियेव वर्डी जैसे विश्वविख्यात तथा अन्य भी अगणित संगीतज्ञों के समकक्ष उन्हीं जैसी हैरियट संगीत की धुनें निकाल लेती थी। आश्चर्य की बात यह है कि उसने संगीत का कभी अभ्यास नहीं किया है, न ही उसे लय, ताल, स्वर, रागनियों का ही कुछ ज्ञान ही था।

जॉन वॉन न्यूमेन नामक विद्वान को मूर्धन्य गणितज्ञ की पदवी मिली है। वह कठिन से कठिन गणित के प्रश्नों का उत्तर बिना गुणा भाग किये, बिना किसी यन्त्र का प्रयोग किये, देने के लिए प्रख्यात है। योरोपीय विद्वान समय-समय पर उनसे गणित की समस्याओं पर विचार-विमर्श करने आते रहते हैं। भारत की सुप्रसिद्ध शकुन्तला देवी की तरह अमरीकी चीफ जस्टिस चार्ल्स इवान ह्यूजेस के मस्तिष्क को भी इलेक्ट्रानिक कम्प्यूटर माना जाता है। एक बार उन्होंने अपने स्टेनोग्राफ़र को एक भाषण दो घन्टे नोट कराया। दो घन्टे बाद उसे बिना पढ़े ही बिना एक भी गलती किये क्रमबद्ध दुहरा दिया। उनकी अद्भुत मेधा अमरीका में चर्चा का विषय है।

वैज्ञानिक क्षेत्र में मस्तिष्क की विलक्षणताओं के सम्बन्ध में विभिन्न प्रकार की अटकलें लगायी जा रही हैं। कुछ वैज्ञानिक इसका सम्बन्ध मस्तिष्क के प्रोटीन रसायन से जोड़ते हैं। कुछ का मत है कि मस्तिष्क के अन्तराल में कम्प्यूटर जैसी कोई अविज्ञात प्रणाली भी कार्यरत है। दूसरी ओर पेलो अल्टो स्कूल ऑफ प्रोफेसनल साइकोलॉजी के डॉ. टी. एल. ब्रींक ने प्रतिभा का सम्बन्ध मस्तिष्क के वाम भाग से जोड़ते हुए कहा है कि यह क्षेत्र असीम सम्भावनाओं का छुपा भण्डार है जिसका अध्ययन गम्भीरतापूर्वक करना होगा।

वैज्ञानिकों की अटकलों तथा मनोवैज्ञानिक क्षेत्र के प्रयोग परीक्षणों से निकले निष्कर्षों के आधार पर मानसिक प्रतिभा के कारणों की स्पष्ट व्याख्या कर सकना मुश्किल है। बुद्धि विश्लेषण एवं प्रखरता के निर्धारण के लिए बनाये गये बुद्धिलब्धि जैसे मापदण्ड अत्यन्त बौने सिद्ध होते हैं। यथार्थता यह है कि इन परीक्षणों से बुद्धि चातुर्य का प्रत्यक्ष स्थूल पक्ष ही पकड़ में आता है। इन्टेलीजेन्स का वह पक्ष जो महान तथा महत्वपूर्ण आविष्कारों का जन्मदाता है किसी भी तरह इन परीक्षणों की सीमा में आ नहीं पाता। सशक्त कल्पनाओं, प्रखर विचारों का इनसे परिचय नहीं प्राप्त किया जा सकता। हिमनदों में बर्फ के शिलाखण्डों का तीन चौथाई हिस्सा पानी के भीतर डूबा रहता है, एक चौथाई ऊपर दिखायी पड़ता है। प्रतिभा की भी लगभग ऐसी ही स्थिति होती है। एक मोटा और अत्यन्त छोटा पक्ष ही बुद्धि का व्यक्त रूप में सामने आता है। उसी को लेकर मनुष्य अपने दैनन्दिन जीवन के क्रिया-कलापों को गतिशील रखता है। अधिकाँश भाग तो प्रसुप्त स्थिति में दबा पड़ा रहता तथा उपयोग में नहीं आ पाता है।

जन्मजात प्रतिभा की विलक्षणता का कुछ सुनिश्चित कारण मनःशास्त्री तथा न्यूरोलाजिस्ट नहीं बता पाते। आनुवांशिकी से जोड़े जाने वाले तीर-तुक्कों की भी अब सटीक संगति नहीं बैठती। आनुवांशिकी के नियमों को झुठलाने वाले विपरीत तथ्य एवं प्रमाण भी देखें जाते हैं। मूर्ख माता-पिता से मेधावी तथा मेधावी के मूर्ख पैदा होने के उदाहरण भी समय-समय पर मिलते हैं। सबसे अधिक रहस्यमय तथा चौंकाने वाली वे घटनाएँ होती हैं जिनमें बिना शिक्षण प्राप्त किये विशिष्ट स्तर की प्रतिभा किन्हीं-किन्हीं व्यक्तियों में अकस्मात उभरती दिखायी पड़ती है।

अध्यात्म विज्ञानी इनका सम्बन्ध जन्म-जन्मान्तरों के संस्कारों से जोड़ते हुए कहते हैं कि अनायास प्रतिभा के रूप में दिखायी पड़ने वाली विशेषता पूर्व जन्मों की उपार्जित होती है। शरीर का मरण होते हुए भी कृत्यों के संस्कार सूक्ष्म रूप से बने रहते तथा नये जन्म के साथ प्रकट होते हैं। सम्भव है इस जीवन में उस प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति को कोई शिक्षण न मिला हो, न ही उसने किसी प्रकार का प्रयास किया हो पर उसको मिला यह अनुदान पूर्व जन्म के संचित ज्ञान की ही अभिव्यक्ति हो।


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