घोर अँधेरी रात, जब हाथ को हाथ नहीं सूझता था। झरना अपने अविरल प्रवाह से कल-कल करता हुआ एकान्त निर्जन विजन में बहता चला जा रहा था।
एक पहाड़ी उपत्यिका ने पूछा- निर्झर! तुम्हें थकावट नहीं आती क्या? तनिक रुको, कुछ विश्राम भी तो कर लिया करो।
एक स्नेह दृष्टि डालते हुए झरने ने उपत्यिका को उत्तर दिया- बहन! मुझे जिस महासागर से मिलना है, उसकी दूरी अनंत है। रुकूँगा तो इधर-उधर भटकूँगा। चलते रहने से तो वह दूरी कुछ कम ही होगी। यह कहकर झरना आगे बढ़ चला।