फूल के मन में फल की भक्ति उमंगी। विलाप करते हुए उसने कहा- ‘जीवन धन, इष्ट देव, तुम कहाँ हो। तुम्हारे पाने के लिए मैं कितना छटपटा रह हूँ।’
फल दीखा भी नहीं और बोला भी नहीं, किन्तु अपनी मौन वाणी से कान में कहा- देखते नहीं, तुम्हारे अन्तर में ही तो छिपा बैठा हूँ।