भगवान महावीर उधर से गुजर रहे थे। रास्ते में मिले एक ग्रामीण ने उनके चरणों पर गिरकर प्रणाम किया। उत्तर में अर्हत ने भी उसके चरणों पर मस्तक टेका।
ग्रामीण सकपकाया- बोला- आप तपस्या के भण्डार हैं, उस विभूति को मैंने नमन किया। पर मैं तो कुछ नहीं हूँ, मेरा नमन किस लिए।
अर्हत ने कहा- तेरे भीतर जो परम पवित्र, आत्मा है, मैं उसी को देखता हूँ और नमता हूँ। मेरे ‘तप’ से तुम्हारा ‘सत्य’ बड़ा है।