भिखारी ने हाथ आगे बढ़ाया पर जेब में कुछ न निकला। अश्वपति कुछ दुःखी से होकर घर गये और एक बर्तन उठाकर ले आये और भिखारी को दे दिया।
थोड़ी देर में अश्वपति की पत्नी आई और वह बर्तन न पाकर चिल्लाई अरे चाँदी का बर्तन भिखारी को दे दिया, दौड़ो-दौड़ो उसे वापस लेकर आओ।
अश्वपति ने आगे बढ़कर भिखारी को रोककर कहा- भाई! मेरी पत्नी ने बताया है कि यह गिलास चाँदी का है। उसे सस्ता मत बेच देना।
एक पड़ौसी ने पूछा- अश्वपति! जब तुम्हें पता हो गया था कि गिलास चाँदी का है तो भी उसे गिलास क्यों ले जाने दिया।
अश्वपति ने हँसकर कहा- मन को इस बात का अभ्यास कराने के लिए कि वह बड़ी से बड़ी हानि से भी दुःखी और निराश न हो।