Quotation

August 1984

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तीर्थ अथवा किसी विभूतिवान् पुरुष के मात्र चर्मचक्षुओं से दर्शन से क्या व्यक्ति निहाल हो जाता है? स्पर्श का अपने स्थान पर महत्व होते हुए भी एक तथ्य अधिसंख्य व्यक्ति भूल जाते हैं कि दर्शन इतना ‘सस्ता, नहीं होता इसके लिए अन्तः चक्षुओं को खोलना अनिवार्य है। फिर प्रत्यक्ष दर्शन का अभाव खलता नहीं।


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