नवरात्रि में शांति-कुंज में साधना करें

August 1984

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

उपासना के लिए सभी स्थान सभी समय शुभ हैं। भगवान का नाम लेने में कहीं कोई दोष नहीं है। फिर भी स्थान और काल की विशिष्टता से इन्कार नहीं किया जा सकता। फसल समय पर बोई जाय तो उसका परिणाम अलग होगा और कुसमय बोने पर उतना ही श्रम करने पर भी प्रतिफल स्वल्प रहेगा। यही बात समय या क्षेत्र के सम्बन्ध में भी है। ऊसर और उर्वर भूमि में बीज बोने का अन्तर रहेगा। नागपुरी सन्तरे जितने मीठे होते हैं उतने अन्यान्य के नहीं। वर्षा ऋतु में बोया गया मक्का, बाजरा जितनी पैदावार जितनी जल्दी देता है उतना जाड़े या गर्मियों की ऋतु में बोने पर नहीं। खाद पानी और परिश्रम एक जैसा लगाने पर भी मौसम, क्षेत्र और समय का अन्तर जिस प्रकार फसल में रहता है। उसी प्रकार वह अन्तर उपासना के सम्बन्ध में भी रहता है।

गायत्री उपासना के सम्बन्ध में रोक कभी भी नहीं है, पर आश्विन और चैत्र की नवरात्रियों में उसके लिए विशेष महत्व माना गया है। शास्त्रकारों ने उसका सौ गुना फल माना है। इसलिए विचारशील उपासक इस समय को चूकते नहीं और नौ दिन का अनुष्ठान कितना ही काम हर्ज होने पर भी करते हैं। साथ ही इसके लिए उपयुक्त स्थान तलाश करते हैं। जिन स्थानों में कुसंस्कार चिपके हैं वहाँ बैठ कर की गई साधना भी स्वल्प फलदायक होती है।

इसलिए इस निमित्त लोग तीर्थ भूमि तलाश करते हैं। यही कारण है कि हर साल गायत्री नगर, गायत्री तीर्थों में अनेकों श्रद्धालु साधक पहुँचते हैं और वहाँ नवरात्रि साधना करके अपेक्षाकृत अधिक लाभ उपलब्ध करते हैं।

गंगा का तट- सप्त ऋषियों की तपोभूमि, हिमालय का प्रवेश द्वार शांति-कुँज ऐसा ही है जिसमें नवरात्रि की अनुष्ठान साधना का अधिक पुण्य फल माना गया है। फिर यहाँ के वातावरण की भी विशेषता है। नित्य 24 लाख जप, नौकुण्डीय यज्ञशाला में 24 हजार आहुतियाँ, अखण्ड दीपक आदि कारणों से यहाँ साधना मय विशिष्ट वातावरण है। गायत्री के दृष्टा ऋषि विश्वामित्र की यह तपस्थली है। किस साधक के लिए क्या विशेषता का समन्वय हो, इसके लिए शारीरिक, मानसिक जाँच-पड़ताल की विशेषज्ञों द्वारा विशेष व्यवस्था है। संरक्षण के लिए उपयुक्त दिव्यात्मा चाहिए। सो यहाँ मौजूद है। अब तो गुरुदेव की सूक्ष्मीकरण विधा चल रही है, इसलिए उनकी प्राण ऊर्जा भी साधक को चौबीसों घन्टे उपलब्ध रहेगी। यह सुयोग संसार भर में अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं है। यह असंख्यों का अनुभव है, इसलिए नवरात्रि साधना की बात जिनके मन में आती है, जिनके लिए किसी भी प्रकार सम्भव है, वे नवरात्रि का गायत्री अनुष्ठान करने के लिए शांति-कुँज दौड़ते हैं। भले ही इसके लिए कोई जरूरी काम ही हर्ज क्यों न होता हो।

इस बार आश्विन की नवरात्रि ता. 25 सितम्बर से आरम्भ होकर 3 अक्टूबर को समाप्त होती है। 4 अक्टूबर को विजयादशमी है। तिथि क्षय से कोई अन्तर नहीं पड़ता। अनुष्ठान साधना 9 दिनों में ही पूरी होती है। इस सत्र में जिन्हें आना हो, वे अभी से स्वीकृति प्राप्त कर लें।

हर साल आश्विन में शांति कुँज में दो नवरात्रियाँ मनाई जाती हैं क्योंकि सभी आगन्तुकों को एक में स्थान नहीं मिल पाता। फिर दशहरा, दिवाली के बीच अनेक विभागों की छुट्टियाँ भी रहती हैं। इसलिए एक दिन अपने जाने वालों के लिए खाली छोड़कर 4 से 23 अक्टूबर तक की एक नवरात्रि और मनाई जा रही है। जिन्हें पहली नवरात्रि में आना सम्भव न हो, वे दूसरी में आ सकते हैं। दोनों का ही समान महत्व है।

इस वर्ष एक नई विशेषता यह है कि गुरुदेव का सूक्ष्म शरीर प्रत्येक साधक के संपर्क में प्रत्यक्ष रहेगा। यह लाभ पिछले वर्षों में से कभी किसी को नहीं मिला। प्रत्यक्ष वार्तालाप या प्रवचन का थोड़ा सा समय ही हर साधक के हिस्से में आता था। इस बार दर्शन, परामर्श, प्रवचन, का परोक्ष सुयोग मिलेगा। प्रत्यक्ष वार्त्तालाप माता जी से हो ही जाता है। इस प्रकार विशेष लाभ है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118