बहुत धन था (kahani)

August 1984

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक कंजूस के पास बहुत धन था। उसने उसे जमीन में गाड़ रखा था। किसी प्रकार चोरों ने उसका पता लगा लिया और अवसर पाकर उसे खोद ले गये।

कंजूस ने यह देखा तो वह दहाड़ मार कर रोने लगा। पड़ौसी भी कौतूहल वश इकट्ठे हो गये। कारण विदित होने पर छोटे लड़के ने कहा लाला जी वह धन न आपके किसी काम आ रहा था और न किसी और के। निरर्थक पड़े रहने की अपेक्षा यदि वह चोर के काम आने लगा तो क्या हर्ज हुआ।

बच्चों की बात का हल्का सा समर्थन खड़े हुए अन्य लोगों ने भी किया और एक बूढ़ा बोला- धन तभी तक धन है जब वह किसी उद्योग उपयोग में लगा रहे अन्यथा उसमें और कूड़े करकट में क्या अन्तर।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118