कोयल कौआ पास-पास के दो पेड़ों पर रहते थे। एक पेड़ सूखा था दूसरे का हरा। दोनों नियति को दोष देते कि ऐसा पक्षपात क्यों चलता है।
मौसम बदला। ठूँठ हरा होने लगा और हरे के पत्ते झड़ गये। कौए और कोयल को इस नये परिवर्तन पर भी वही पुरानी शिकायत थी। दोनों बहस की झड़ी लगा रहे थे।
एक हंस उधर से निकला। विवाद में रस लिया और गम्भीर मुद्रा में कहा- “नियति में पक्षपात नहीं, परिवर्तन का क्रम है। उसे ही स्वीकार करें, विवाद में न उलझें।”