किसी को कुछ, किसी को कुछ देने के लिये लोग भगवान की निन्दा कर रहे थे और उसे पक्षपाती ठहरा रहे थे।
सुन रहे थे कोई दार्शनिक। वे लोगों को साथ लेकर खेतों पर गये। एक में गुलाब बोया था दूसरे में तमाखू। एक से सुगन्ध उठ रही थी दूसरे से बदबू।
दार्शनिक ने कहा- जमीन बहुत बुरी है। किसी को क्या, किसी को क्या देती है। उसका पक्षपात देखा।
लोग बोले- नहीं, यह धरती का नहीं बोने वालों के कृत्यों का फल है।
हंसते हुए ज्ञानवान ने कहा- “भगवान एक प्रकार का खेत है उसमें जो जैसा बोता है वह वैसा काटता है।”