जिन्दगी जीना एक महती कलाकारिता

June 1983

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जीवन दुःखों, और पापों का संग्रह भी और आशा उल्लास से भरा-पूरा अमृत कलश भी। उसे किस रूप में विकसित किया जाय यह अपना काम है। जीवन एक खेत है उसमें इच्छानुसार कुछ भी बोया उगाया जा सकता है।

परिवर्तन के लिए संकल्प साहस और पुरुषार्थ के अतिरिक्त धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। उतावले लोग जो आज सोचते हैं उसे कल ही प्रत्यक्ष और फलित देखना चाहते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि बीज को अंकुरित होकर बढ़ाने और फलने में कितना समय लगता है। हथेली पर सरसों जमाने और जादू चमत्कार की तरह अभीष्ट मनोरथ तुर्त-फुर्त पूरा होने की उतावली देर तक ठहरती नहीं। वह पानी के बबूले की तरह उठती और देखते-देखते धूप-छाँव की तरह समाप्त भी हो जाती है।

जीवन एक कहानी है। जिसका प्रसंग ही सराहा जाता है, यह नहीं देखा जाता कि वह कितनी लम्बी हुई या कितनी देर तक कही गई। कौन कितने दिन जिया इसका महत्व नहीं। सराहने के योग्य उतने ही दिन हैं जो शानदार रहे और सत्प्रयोजनों में व्यतीत हुए।

जीवन एक चित्र है जिसे इतना सुन्दर बनाया जाना चाहिए कि जिनकी भी आँख पड़े मन्त्र मुग्ध हुए बिना न रहे। रास्ते पर फूल बखेरते चलना कठिन है पर यह किसी के लिए भी सरल है कि मुसकान लुटाता चले। जिन्दगी एक खेल है, जिसे इस तरह खेला जाना चाहिए कि बिना हार-जीत की परवा किये एक कुशल खिलाड़ी की तरह खेला जाय। खेलने वालों की तरह दर्शक भी जिससे प्रसन्नता ग्रहण कर सकें तभी उस प्रयत्न की सार्थकता समझी जा सकती है। अन्यथा वह ऐसा भारभूत श्रम बनेगा जैसा कि हारे हुए खिलाड़ी मुँह लटका कर वापस लौटते हैं।

क्या देखा, क्या समेटा, क्या चखा इस आधार पर जीवन की सफलता असफलता नहीं आँकी जानी चाहिए वरन् यह देखा जाना चाहिए कि उससे कितनों को सहारा मिला। कितनों ने प्रगति पथ पर चल पड़ने का प्रकाश एवं उत्साह पाया। इस संदर्भ में दूसरों के साथ रहते हुए भी उनसे मार्ग दर्शन की आशा नहीं करनी चाहिए। श्रेष्ठता की राह पर चलने में जो आरम्भिक हानि दीखती है उसके सम्बन्ध में बीज बोने और फसल काटने जैसी दृष्टि दूरदर्शियों की ही होती है। सामान्य जन वैसे नहीं होते। तत्काल का लाभ तो क्षुद्रता और दुष्टता से ही साधता है। लोगों को वैसा ही अभ्यास अनुभव है इसलिए वे परामर्श भी वैसा ही दे सकते हैं। श्रेष्ठता के मार्ग पर चलने के लिए आत्म चिन्तन और आत्म विश्वास के अतिरिक्त और किसी का समर्थन किसी को कदाचित ही कभी मिला हो, वैसी आशा हमें भी क्यों करनी चाहिए?

जीवन एक कलाकारिता की कसौटी है। कौन उसे कितना सुन्दर बना सका इस प्रतिस्पर्धा में जो जीतते हैं वे असाधारण उपहार पाते हैं। प्रतिस्पर्धाओं में अनेकानेक हैं। उनमें जो आगे रहते हैं। वे विजेता का पुरस्कार पाते हैं। सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धा जीवन को अधिकाधिक पवित्र और प्रखर बनाने की है। जो इसमें जितनी सफलता पा सके उन्हें उतना ही बड़ा कलाकार माना जायेगा। मनुष्य का इससे बड़ा गौरव और सम्मान दूसरा नहीं हो सकता कि उसने अपने लिए प्रमाणिकता का सम्मान अर्जित किया। दूसरों के लिए सहारा दिया गया पीछे वालों को अनुकरणीय अभिनंदनीय दिशा में चल पड़ने का उदाहरण उपलब्ध हुआ।

वाल्टेयर कहते थे- “जिन्दगी की सफलता उसमें मिले हुए वैभव सम्मान और विलास से मत आँको वरन् इस आधार पर जाँचो कि उससे अपना भविष्य और दूसरों का उत्कर्ष कितना बन पड़ा। भला मनुष्य दुहरी कमाई करता है उसके द्वारा आत्म-कल्याण और विश्व-कल्याण दोनों ही प्रयोजन समान रूप से सधते हैं।”


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