घनिष्ठता-एकात्मता

June 1983

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सान्निध्य कितना प्रभावी होता है इसका प्रतिपादन कई उदाहरण देकर सिखाया, समझाया जाता रहता है। पारस को छूकर लोहे का स्वर्ण बन जाना- चन्दन के समीप उगे झाड़-झंखाड़ों का महकने लगना, कल्प वृक्ष के नीचे बैठकर मनोवांछित पा लेना, अमृत पीकर जरा-मरण से छुटकारा पाना जैसे उदाहरणों में यही बताया गया है कि सत्संगति का कितना प्रभाव होता है। स्वाति बूँदों का सान्निध्य प्राप्त करके सीपी का मोती उगलना इसी प्रमाण शृंखला के अंतर्गत आता है।

पति-पत्नी के दो शरीर एक मन होने की उक्ति इसी आधार पर सार्थक बनती है कि वे दोनों परस्पर अधिकाधिक घनिष्ठता बढ़ाते हैं और एक दूसरे के साथ घुलते चले जाते हैं। माता का सर्वाधिक प्रभाव संतान पर पड़ने की बात के पीछे भी इसी तथ्य को प्रधान रूप से कार्यान्वित होते देखा जा सकता है। सत्संग की ही नहीं कुसंग की महिमा भी ऐसी ही है। “कोयले की दलाली से काले हाथ” - “साँप के पेट में पहुँच कर दूध भी विष बन जाता है”, इसी तथ्य की पुष्टि करते हैं।

जुड़वा बच्चों के बीच पाई जाने वाली असाधारण समता इस तथ्य को और भी अच्छी तरह प्रमाणित करती है। उनमें से अधिकाँश के बीच न केवल रंग रूप की समता पाई जाती है वरन् आकृति के साथ-साथ प्रकृति भी बहुत कुछ मिलती-जुलती है। न केवल प्रकृति मिलती है वरन् एक-दूसरे के साथ असाधारण स्नेह सहयोग भी रखती है।

माता के पेट में एक साथ नौ महीने रहने और एक ही वातावरण में लगातार पलने का प्रभाव उनके बीच ऐसा अदृश्य तालमेल भी बैठ जाता है कि वे एक-दूसरे की परिस्थितियों से प्रभावित होते और दूर रहते हुए भी परस्पर एक जैसी भाव सम्वेदनाओं का अनुभव करते हैं। एक के कष्ट में दूसरा दुःखी और एक के सुख में दूसरा सुखी होते देखा गया है। यहाँ तक की जन्म की तरह उनके मरण काल में भी बहुत ही कम अन्तर देखा गया है।

यह एकता एवं घनिष्ठता का चमत्कार है। स्वार्थों और दुष्टता का व्यतिक्रम तो कहीं भी रस में विष घोल सकता है किन्तु सामान्य नियम यही है कि निकटतम घनिष्ठता से मनुष्य भी प्रभावित होते हैं। आग की निकटता से गर्मी और बर्फ की निकटता से सर्दी अनुभव होना सान्निध्य संपर्क के चमत्कारी प्रतिफल की ओर इंगित करता है। इस संबंध में जुड़वा बच्चों की घनिष्ठता विशेष रूप से दृष्टव्य है।

लन्दन में ग्रेटा और फ्रेडा दो जुड़वा भाई एक जैसी शक्ल सूरत के थे। उनके देखने और चलने का ढंग भी एक जैसा था। एक जैसा भोजन पसन्द करते और एक जैसे कपड़े पहनते। दोनों एक जैसा सोचते और एक जैसी दिनचर्या अपनाते। यही ही नहीं दोनों में संवेदनात्मक एकता भी थी और दूर होने पर भी एक की मनःस्थिति दूसरे को प्रभावित करती।

वे उत्तरी इंग्लैंड के आटयार्क स्थान में रहते थे। इनमें से एक को शान्ति भंग के आरोप में मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया तो दूसरा भी ठीक उसी तरह उद्विग्न पाया गया।

मनोविज्ञान विशेषज्ञ डेविड वेस्वरी ने दोनों की मनःस्थिति का गम्भीर अध्ययन किया। वे उन्हें “एक मस्तिष्क दो शरीर” कहते थे।

ऐसी ही एक घटना और भी है। दो लड़कियां बॉक्स और पारिस एक साथ जन्मी। 16 वर्ष की आयु में उन्हें वेसटर्न यूनियन टेलीग्राफ कम्पनी में आपरेटर के पद पर नौकरी मिल गई। दोनों उसी कम्पनी में 40 वर्ष लगातार काम करती रहीं। दोनों ने शादियाँ तो कर ली पर बच्चा एक को भी नहीं हुआ। उनमें से एक कॉम्स को 1973 में मस्तिष्कीय नाड़ी विकार की बीमारी हुई। दूसरी अस्पताल में उसे देखने जाया करती थी कि उसे भी वही बीमारी हो गई। कार्डेल के नर्सिंग होम में दोनों की मृत्यु एक साथ एक समय ही हुई। अस्तु उन्हें दो खाँचे वाले ताबूत में रखकर एक साथ ही दफन भी किया गया।

जुड़वा बच्चे बहुधा एक जैसी आकृति के न सही प्रकृति में समान पाये जाते हैं। उनमें न केवल गुण स्वभाव ही एक जैसे होते हैं वरन् ऐसा भी पाया गया है कि परस्पर घनिष्ठता भी बहुत होती है। प्रकृतिगत साम्य भी असाधारण मात्रा में पाया जाता है।

जार्डिया के कार्डेस नगर में दो बच्चे एक साथ पैदा हुए। एक का नाम मार्गेट नीहम, दूसरे का फ्लोरेंस नीहम। दोनों जीवन भर साथ रहे। जहाँ कहीं भी जाते साथ जाते। साथ काम करते और साथ-साथ ही रहते। वे 87 साल तक जिये। दोनों के बीच जन्म समय में भी दो घण्टे का अन्तर था और मृत्यु में भी वही ठीक घण्टे का आगा पीछा हुआ। उनके जीवन काल की घटनाओं में विचित्र साम्य था, जिसका कोई समाधान न्यूरो साइंटिस्टों के पास नहीं था।

मथुरा जिले के सहपऊ कस्बे में 65 वर्ष पूर्व एक ही रात्रि को एक ही समय में दो व्यक्ति जन्मे थे। वे जुड़वा तो नहीं पर पड़ोसी अवश्य थे। दोनों जीवन भर मित्र भी रहे। इनमें से एक का नाम था- बनवारी लाल दूसरे का श्रीराम। दोनों ही ब्राह्मण थे।

अचानक हृदय के दौरे से उनमें से एक की मृत्यु हुई। दूसरे ने कहा अब हमको भी चलना चाहिये। इतने में दूसरे को भी हृदय का दौरा हुआ और वह भी कुछ क्षणों के अन्तर से ही परलोक सिधार गया।

इसी प्रकार बिजनौर जिले के निकटवर्ती गाँव गिलाड़ा के दो जुड़वा भाइयों की मृत्यु भी एक घन्टे के आगे-पीछे से ही हो गई। वे जन्में भी इतने ही अन्तर से थे। दोनों भाई पहलवानी करते थे और पचास वर्ष तक हृष्ट-पुष्ट जिये। कभी बीमार नहीं पड़े, पर कुछ ही घण्टे की आकस्मिक बीमारी से उनका स्वर्गवास हो गया।

जुड़वा बच्चों की आत्मा दो ही होती हैं, पर उनकी शारीरिक मानसिक निकटता जब घनिष्ठता बन जाती है तो एक दूसरे के साक्षी बन कर रहते हैं। यह सिद्धांत उन सभी पर लागू होता है। जो सच्चे अर्थों में घनिष्ठता स्थापित कर सके। सच्चे अर्थों में मित्र साथी बन सकें। इन उदाहरणों से समष्टिगत चेतना की व्यष्टि में संव्याप्त चेतना शक्ति की महत्ता सिद्ध होती है। आर्षग्रन्थों में वर्णित मान्यताओं को प्रमाणित ही करती है।


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