हम प्रज्ञा-प्राण-क्रान्ति लाये (kavita)

June 1983

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भू पर परिवर्तन लाने को, हम प्रज्ञा-प्राण, कान्ति लाये। मानव में उतरे देव पुरुष, धरती पर स्वर्ग-शान्ति लाये॥

मानव ही गिरा उठा ऊपर, मानव का प्राण-पसार है। मानव की अनुपम क्षमता का फैला देखो उजियारा है।

मानव ने महाविनाश रचा, मानव ने विश्व सँवारा है। है मानव की महिमा अपार, ये मानव लोक हमारा है।

मानव-मंगल की प्रभा लिये, हरने दुःख अशान्ति आये। भू पर परिवर्तन लाने को, हम प्रज्ञा-प्राण, क्रान्ति लाये॥

मानव, महानता, मधुता का भण्डार भरे तम में खोया। मानव ने दुःख दुर्बलता नित दाह-भरा दुःखना रोया।

अपने छोटेपन में अकड़ा, जकड़ा, खुद की जंजीरों से। अपने स्वरूप का बोध भुला, उलझा कुरूप तस्वीरों से।

निरभ्रान्त बना मानव-प्रज्ञा, हम हरने सकल भ्रान्ति आये। भू पर परिवर्तन लाने को, हम प्रज्ञा-प्राण, क्रान्ति लाये॥

फिर महाप्राण की धारायें, भागीरथ लाये धरती पर। दुःखिया मानवता की पीड़ा, करुणा-उफनाये, धरती पर है।

सन्तोष शान्ति, शुचि तृप्ति-सुधा की धार बहाये धरती पर। छू-छूकर प्राणों की लहरें, जीवन लहराये धरती पर।

मानव में उतरे देव पुरुष, धरती पर स्वर्ग-शान्ति लाये। भू पर परिवर्तन लाने को, हम प्रज्ञा-प्राण, क्रान्ति लाये॥

*समाप्त*


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