इतिहास साक्षी है कि व्यक्ति महापुरुष तभी बने हैं, जब उन्होंने धन को तिलाँजलि देकर दरिद्रता अपनायी है। -एमर्सन
तुम्हें तो सदैव सम्पत्ति के खोने की चिंता रहती है, सो मेरी भाँति तुम्हारे हास्य में गूँज कहाँ से आये? -अज्ञात