किसी ने एक सन्त से पूछा- “महाराज ! जब सन्त और धूर्त सब एक ही तरह के कपड़ों में विचरण करने लगे तब तो हम लोगों के लिए बड़ी कठिन समस्या खड़ी हो जाती है। कोई ऐसा उपाय बताइये, जिससे धूर्तों से बच कर हम सन्तों की सेवा कर सकें।”
सन्त ने मुस्कराते हुए कहा- “इसमें कौन-सी बड़ी बात है। धूर्त सेवा करवाने के फेर में रहते हैं और सन्त सेवा करने के फेर में। सन्त प्रत्येक स्थिति में सन्त जैसा व्यवहार करता है, धूर्त का व्यवहार अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए चापलूसी और चतुराई से भरा रहता है। धूर्त माँगता है और सन्त देता है।”