भक्त पुण्डलीक अपने माता-पिता की सेवा साधना में लगे थे।
भगवान आये और बोले, दरवाजा खोलो, दर्शन देने आया हूँ। देर न करो, जल्दी लौटना है।
पुण्डलीक ने कहा- “भगवान् ! थोड़ा ठहरना पड़ेगा। जिस सेवा साधना ने आपकी अनुकम्पा सम्भव की उसे छोड़कर आपकी मनुहार कर सकना मुझसे बन नहीं पड़ेगा।”