भक्त पुण्डलीक (kahani)

June 1983

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भक्त पुण्डलीक अपने माता-पिता की सेवा साधना में लगे थे।

भगवान आये और बोले, दरवाजा खोलो, दर्शन देने आया हूँ। देर न करो, जल्दी लौटना है।

पुण्डलीक ने कहा- “भगवान् ! थोड़ा ठहरना पड़ेगा। जिस सेवा साधना ने आपकी अनुकम्पा सम्भव की उसे छोड़कर आपकी मनुहार कर सकना मुझसे बन नहीं पड़ेगा।”


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