आज का दिन, सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त

June 1983

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अवसर की तलाश में मत रहो। बुद्धिमानों के लिए हर समय अवसर है। न वे मुहूर्त निकालते हैं, न साथ ढूँढ़ते हैं और न सहारा तकते हैं। सृष्टा ने समय को ऐसी धातु से गढ़ा है कि उसका प्रत्येक क्षण शुभ है। अशुभ तो मनुष्य का संशय है, जो पल में आशा बाँधता और पल में निराश होता है।

बुराई के अवसर दिन में सौ बार आते हैं। पतन और प्रलोभनों की सर्वत्र भरमार है। धरती पर गुरुत्वाकर्षण हर किसी को- हर घड़ी गिरने के लिए बुलाता और घसीटता है। अच्छाई का अवसर तो मनुष्य को स्वयं विनिर्मित करना पड़ता है। वह बिना बुलाये किसी के पास नहीं आता है। आदर्शों के प्रति निष्ठा और अपने भरोसे पर हिम्मत जिस घड़ी उठ पड़े, समझना चाहिए कि ऊँचे उठने आगे बढ़ने की शुभ घड़ी आ पहुँची।

राह मिले तो ठीक, नहीं तो उसे बुलाना चाहिए। अवसर आये तो ठीक, नहीं तो उसे आग्रहपूर्वक बुलाना चाहिए। जो अवसर का उपयोग जानते हैं वे उसे पैदा भी कर सकते हैं। आज का दिन हर भले काम के लिए उपयुक्त है। जो शुभ है उसे शीघ्र ही किया जाना चाहिए। देर तो उनमें करनी चाहिए जो अशुभ है। जिसे करते हुए अन्तःकरण में भय संकोच का संसार होता है।

मनस्वी लोगों ने कभी अवसर की शिकायत नहीं की, हमें अवसर मिलता तो यह कर दिखाने की डींग हाँकने वाले थोथे चने की तरह हैं जो सिर्फ बज सकते हैं, उग नहीं सकते। अवसर आगे बढ़कर हाथ में लिया जाता है और अपनी प्राणाणिकता के आधार पर उसे सार्थक कर दिखाया जाता है। काम चाहे छोटा ही क्यों न हो, यदि सही तरीके से कर दिखाया जायगा तो उससे अच्छा परिणाण अनायास ही दौड़ता आयेगा और कहेगा कि हमें भी कर दिखाया जाय। यही उन्नति की सीढ़ी है। एक-एक कदम आगे बढ़ने और ऊँचे उठने का तरीका यही रहा है कि एक काम सही तरीके से किया नहीं गया कि उससे अच्छा, तत्काल आगे आ उपस्थित हुआ।

आशावादी हर कठिनाई में से उपयोगी अवसर ढूँढ़ निकालता है जबकि निराशावादी हर उपस्थिति अवसर में कोई न कोई कठिनाई देखता है और उसे करने से जी चुराने का कोई बहाना खोजता है। हर दिन, हर सप्ताह, हर मास, हर वर्ष हमारे लिए उज्ज्वल भविष्य के उपहार लिए हुए आता है, हम हैं जो न तो उसे पहचानते हैं और न उसका स्वागत करते हैं फलतः वह वापस चला जाता है और फिर कभी वापस लौटकर नहीं आता।

शेक्सपियर कहते हैं- ‘समय को मैंने बर्बाद किया और वही बर्बादी मेरी परेशानी और बर्बादी का कारण बनी हुई है।’ फ्रेकलिन कहते थे “एक ‘आज’ दो ‘कल’ के बराबर है। इसलिए कल की प्रतीक्षा में न बैठो, जो करना है उसके लिए आज ही कमर कसनी और तैयारी करनी चाहिए। जिसने समय का मूल्य नहीं समझा समझना चाहिए कि वह छोटे काम करने और छोटे स्तर का बने रहने के लिए ही पैदा हुआ है।”

भूतकाल की चर्चा न करें। जो गया वह लौटने वाला नहीं। सोचा इतना ही जाना चाहिए कि जो शेष है वह कम महत्वपूर्ण नहीं। यदि भूत की शिकायत करने की अपेक्षा भविष्य की योजना बनाने में विचारों को केन्द्रित किया जाय और परिवर्तन का क्रम आज के दिन से ही आरम्भ किया जाय तो समझना चाहिए कि महत्वपूर्ण समझदारी का आरम्भ हुआ। ऐसी समझदारी जिसे कुछ समय कार्यान्वित कर लेने पर भी एक समूची जिन्दगी का लाभ मिल सकता है।


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