परमहंस रामानुजाचार्य (kahani)

November 1981

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

परमहंस रामानुजाचार्य एक बार अपने कुछ ब्राह्मण शिष्यों के साथ नदी में स्नान कर रहे थे। स्नान करने के बाद उनकी दृष्टि दूर खड़े दो अछूतों पर पड़ी जो उनके दर्शन के लिए खड़े थे और श्रद्धापूर्वक उन्हें निहार रहे थे। रामानुजाचार्य ने तुरन्त उन्हें बुलाया और उनके कंधों का सहारा लेकर चल पड़े।

यह देखकर ब्राह्मण शिष्य बड़े क्रोधित हुए। वे बोले- ‘स्नान के बाद शूद्रों का स्पर्श! फिर स्नान से लाभ भी क्या हुआ?’

रामानुजाचार्य मुस्करा पड़े और बोले- ‘वत्स! स्नान से तो शरीर का शुद्धि हो गयी। पर मन पर अछूतों के प्रति घृणा का जो मैल जमा है वह भी तो दूर करना है। यह तुम्हारा भ्रम है कि शूद्र कुल में जन्म लेने से कोई शुद्र होता है। व्यक्ति अपने सत्कर्मों से महान् बनता है और दुष्कर्मों से शूद्र बनता है। अतएव इनके प्रति घृणा का भाव रखना पाप है।’


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles