बुद्धि न तो सर्वज्ञ है और न ही सर्व समर्थ

November 1981

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सृष्टि जितनी सुन्दर है उतनी ही विलक्षण भी। इसके छोटे से छोटे घटक अपने अन्दर इतने रहस्य छिपाये हुये हैं जिन्हें देखकर मानवी मस्तिष्क हतप्रभ रह जाता है। विज्ञान ने अपनी आरम्भिक स्थिति में कभी दावा किया था कि उसने सब कुछ जान लिया है। यह उसके स्थूल पर्यवेक्षण का परिणाम था। गहराई में स्थूल से सूक्ष्म की ओर उतरने पर यह ज्ञात हुआ कि जितना देखा और समझा गया था वह तो जानकारियों का एक छोटा-सा हिस्सा मात्र था। बड़ा भाग तो अब भी अविज्ञात एवं रहस्यमय बना हुआ है।

विराट् सृष्टि में अन्य भागों को छोड़ भी दिया जाय तो भी जिस भू-भाग पर मनुष्य निवास करता और विज्ञ होने का दावा भरता है। उसके ही रहस्य इतने विस्मित करने वाले हैं, जिन्हें देखकर वैज्ञानिक बुद्धि का दर्प चकना चूर हो जाता है और अपनी अल्पज्ञता का भान होता है। इन्हीं में से एक है कनाडा का मौनेक्टन क्षेत्र जो अब भी वैज्ञानिकों के लिये एक पहेली बना हुआ है। सन् 1802 की बात है। कनाडा के ‘न्यूब्रन्सविक’ शहर का एक किसान अपने तांगे को मौनेक्टन की ओर ले जा रहा था। एक साधारण-सी ढाल पर अपने घोड़े की नाल ठीक करने के लिये रुका। घोड़े को खोलकर उसने अलग किया और तांगे को ढाल पर लुढ़कने से बचाने के लिये पहिये के नीचे ढेले लगा दिये और घोड़े को एक पेड़ की छाया में ले गया। उसी समय एक विचित्र बात घटित हुई। किसान का ताँगा ढेला लगा होने से ढलान की ओर तो नहीं लुढ़का परन्तु चढ़ाई की ओर स्वतः चढ़ने लगा। धीरे-धीरे वह गति पकड़ने लगा। विवश होकर किसान को ताँगा रोकने के लिये उसके ‘शाफ्ट’ (धुरे) मोड़ने पड़े।

इस पहाड़ी पर ताँगे को ऊपर की ओर लुढ़कने की घटना सुनकर हजारों लोग उसे देखने गये। वहाँ एक विशेष स्थान पर प्रत्येक ताँगा, गेंद गोल पत्थर आदि पहाड़ी पर ऊपर की ओर लुढ़कने लगते हैं। आजकल यह पहाड़ी एक बहुत बड़ा मनोरंजन पर्यटन स्थल बनी हुई है। वहाँ सड़क पर एक बोर्ड भी लगा है। जिस पर लिखा है- ‘‘मोटर चालक यहाँ से पहाड़ी के ऊपर जाने के लिये इंजन बन्द कर दें, ब्रेक खुले छोड़ दें और पीछे की ओर झुक कर बैठ जायें।”

इस रहस्यमय पहाड़ी की पूरी वैज्ञानिक छानबीन की गयी है। इसका चुम्बकीय शक्ति से भी कोई सम्बन्ध नहीं है। क्योंकि अचुम्बकीय पदार्थों लकड़ी, रबड़ प्लास्टिक आदि से बनी गोल वस्तुयें भी पहाड़ी पर ऊपर की ओर लुढ़कनी शुरू हो जाती है। अनेकों परीक्षणों के पश्चात भी इस रहस्य का पता नहीं लग सका है कि आखिर गुरुत्वाकर्षण के नियम का उल्लंघन क्यों होता है।

ज्वालामुखी के विस्फोटों से सम्बन्धित वैज्ञानिक भविष्य-वाणियाँ अभी तक शत प्रतिशत सत्य नहीं हो सकी हैं। किन्तु जावा के ज्वालामुखी पर्वत पेगरेज के ऊपर लगभग 10 हजार फीट की ऊँची चोटी पर रॉयल काडस्लिप नामक पौधा होता है। इस पौधे पर कभी-कभी ही पुष्प दिखायी पड़ता है। किन्तु यह अशुभ सूचक पुष्प जब भी खिलेगा तो पेगरेज में ज्वालामुखी का विस्फोट अनिवार्य रूप से होता है। स्थानीय लोग जब भी इस फूल को देखते हैं तो अपना स्थान छोड़कर दूरस्थ सुरक्षित स्थानों में पहुँच जाते हैं। एक निश्चित समय में विस्फोट होने के बाद लोग फिर से अपना घर बसाते हैं।

ज्वालामुखी का उस पौधे से क्या संबंध है। पुष्प का खिलना और ज्वालामुखी का फटना एक साथ होने में कोई भी वैज्ञानिक कारण नजर नहीं आता। क्या कोई चेतन सत्ता पुष्प के माध्यम से मानवी सुरक्षा के लिये संकेत देती है अथवा उस पौधे में ही ऐसी कोई भविष्य की घटनाओं को जानने को ऐसा कोई संग्रहीतन्त्र है। अनेकों प्रयोग परीक्षणों के बाद भी चह रहस्य ज्यों का त्यों बना हुआ है। यह नगण्य पौधा कईबार ज्वालामुखी के विस्फोटों से रक्षा करता आ रहा है। उस क्षेत्र के निवासी यह मानते हैं कि कोई दैवीय शक्ति पुष्प के माध्यम से ज्वालामुखी के विस्फोटों से रक्षा करती है। पौधे के प्रति उनकी उतनी ही श्रद्धा है, जितनी कि किसी देवी अथवा देवता के प्रति।

अरबसागर में स्थित ‘वार्सा कल्मीज’ नामक द्वीप वैज्ञानिकों के लिये रहस्यमय बना हुआ है। उस क्षेत्र में ‘कजाक’ नामक भाषा बोली जाती है। कजाक भाषा में वार्सा कल्मीज का अर्थ होता है- “जाओ और कभी वापस मत लौटो।” प्रकृति ने इस क्षेत्र में ऐसा ही क्रूर मजाक किया है। 180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस द्वीप में बादल तो बराबर छाये रहते हैं, पर पानी कभी नहीं बरसता। द्वीप के चारों ओर वर्षा तो होती है, पर उस क्षेत्र में आज तक पानी के दर्शन नहीं हुये। इससे देखने पर निरंतर पानी बरसने का भ्रम होता है। यह भ्रम बादलों के छाये रहने के कारण होता है। कुछ व्यक्तियों ने उस स्थान पर जाने व बसने का दुस्साहस किया पर वे पानी के अभाव में जीवित न रह सके। बादलों के छाये रहने तथा पानी न बरसने का कोई कारण न ढूँढ़ा जा सका।

अमेरिका के ‘एमेको ऑयल रिसर्च डिपार्टमेन्ट’ में आग लगने का कोई कारण न होने पर भी तेल के बड़े-बड़े टैंकर क्यों जल गये? उक्त संस्था के वैज्ञानिकों की परिकल्पना है कि किसी विशेष परिस्थिति में “बॉल ऑफ लाइट’ आती है और आग लगा देती है। वैज्ञानिकों ने इसे ‘फेज ऑक्ड लूप ऑफ इलेक्ट्रोमेग्नेटिक रेडियेशन’ कहा है।

वारमूडा के त्रिकोण में जहाज पर कर्मचारी यात्रियों के गायब होने का एक अन्य कारण बताते हुये वैज्ञानिक कहते हैं कि मनुष्य का दहन स्वतः हो जाता है और जलने के बाद थोड़ी-सी ‘ब्लू ग्रेएश’ बच जाती है। पेन्सिलवानिया विश्वविद्यालय के फिजिकल एंथ्रोपोलॉजी के प्रो. डा. विल्टन एम. कागमैन का अनुमान है कि मानव शरीर को जलाने के लिए 3000 डिग्री फारेनहाइट से अधिक तापमान 12 घंटे के लिये आवश्यक है। फिर भी कुछ हड्डियाँ अवशेष रह जाती हैं। जबकि वहाँ पूर्ण दहन कुछ सेकेंडों में हो जाता है। उस स्थान पर ऐसी ही घटाना घटी उस सम्बन्ध में वे कोई प्रमाण नहीं दे सके।

यह तो इस भू-भाग के उन रहस्यमय स्थानों का छोटा-सा चित्रण है जो अपनी विलक्षणताओं के कारण मानवी बुद्धि को हतप्रभ कर रहे हैं। विराट् सृष्टि अपने अन्दर असीम रहस्यों को समेटे हुये है। उनको जान सकना तो दूर रहा अभी तो सृष्टि के विस्तार की जानकारी भी मनुष्य को ठीक-ठीक नहीं है। स्थूल की तुलना में सूक्ष्म जगत तो और भी व्यापक और विलक्षण है जिसकी परिकल्पना कर सकना तक मनुष्य बुद्धि के लिये सम्भव नहीं है।

बुद्धि न तो सर्वज्ञ है और न ही सर्व समर्थ। उसकी उपयोगिता इतनी भर है कि अपनी क्षमता का सदुपयोग इस संसार को सुन्दर एवं समुन्नत बनाने के लिये करे। मानवी गरिमा इसी में निहित है।


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