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November 1981

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निराशा एक गहरी और अँधेरी घाटी के समान है। इसकी गहराई का कोई अन्त नहीं। जो व्यक्ति इस घाटी में गिरने से अपने को रोक नहीं पाते वे एक ऐसी अन्तहीन स्थिति में पहुँच जाते हैं जहाँ से वापस आ सकना सम्भव नहीं हो पाता। मृत्यु के मुख के समान निराशा की वह अँधेरी घाटी उस अभागे का सम्पूर्ण अस्तित्व निगल कर उसे नष्ट कर देती है। निराशा की घाटी में फँसा व्यक्ति अन्धकार के प्रभाव से इतना कायर हो जाता है कि स्वयं अपने को एक अज्ञात छाया के समान देखता हुआ भयभीत होने लगता है। उस भयानक घाटी में गूँजता हुआ उसका कातर स्वर उसे ही घेरकर प्रेतों का अट्टहास जैसा सुनाई पड़ता है।

ऐ मनुष्य! यदि तू अपना कल्याण चाहता है तो निराशा की इस घाटी के पास मत जा। अपने पर नियन्त्रण रख, सद्विचारों का सहारा ले और साहस के साथ मार्ग में आई इस घाटी को यदि उलाँघ न सके तो बुद्धिमानी से उससे बच कर निकल जा। तेरी जय होगी। -स्वामी रामतीर्थ


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