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November 1981

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राजा सर्वमित्र को मदिरा के बिना चैन न था। राजमहल हो या राजदरबार किसी भी स्थान पर सुरापान करने में उसे संकोच न था। अपने साथ-साथ वह दूसरों को भी पिलाता था। परिणाम यह हुआ कि कुछ ही दिनों में राजकार्य ठप्प होने लगा। अधिकारी प्रजा को सताने लगे। प्रजा दुःखी रहने लगी। जब राजा ही आचारहीन हो तो प्रजा की बात सुने भी कौन?


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