दृश्य और प्रत्यक्ष शक्तियों के अलावा संसार में कई अदृश्य व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालने वाली शक्तियाँ भी हैं। उनमें से कई व्यक्ति या समाज की हितैषी होती हैं तथा कई को विघ्न उत्पन्न करने में ही रस आता है। इन शक्तियों को अदृश्य आत्माएँ कहा जाय अथवा मनुष्य का प्रारब्ध, यह प्रश्न अपनी जगह है परन्तु जब ये मनुष्य के हित में काम करती हैं तो वे बड़े-बड़े संकटों से उबार लेती हैं।
न्यूयार्क में रहने वाली महिला श्रीमती कैथलीन मेककोइन के जीवन में कई अवसर ऐसे आये जब वह आसन्न संकटों से किन्हीं प्रेरणाओं, संकेतों और सहायताओं के बल पर बच गयीं। श्रीमती कैथलीन यों एक साधारण महिला की तरह दिखाई देती हैं, उन्हें देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि यह कोई अलौकिक शक्ति के संरक्षण में रहने वाली महिला हैं, पर कैथलीन के साथ जो घटनाएँ घटीं, वे इस तथ्य को गलत भी नहीं बतातीं।
कैथलीन जब नौ वर्ष की थीं तब एक बार पाठशाला के सैकड़ों विद्यार्थियों के साथ हडसन नदी की सैर करने गयीं। नदी के बीच स्टीमर में आग लग गयी। बच्चे चीखने लगे और हंगामा मच गया। कैथलीन को तभी लकड़ी का एक तख्ता नजर आया और वह तख्ते को अपने सीने से चिपकाकर नदी में कूद गयीं। थोड़ी देर में कुछ नाविकों ने, जो किश्ती खेते हुए उधर आये थे कैथलीन को बचा लिया बाकी सभी बच्चे जल गये।
इसके दो ही साल बाद की घटना है। कैथलीन एक मिनी बस में सफर कर रही थीं। अचानक बस का टायर फट गया और बस लुढ़कती हुई एक खड्ड में जा गिरी। कैथलीन बिल्कुल नहीं घबराई। वह खिड़की का शीशा तोड़कर बाहर कूद पड़ीं। बस में आग लग गयी और कैथलीन के अलावा बाकी सभी लोग जलकर मर गये। इसी प्रकार सन् 1954 में कैथलीन हवाई जहाज से अमरीका जा रही थीं कि जहाज में कुछ खराबी पैदा हो गयी। जहाज के चालक ने जहाज को नीचे उतारना चाहा, लेकिन उतरते ही जहाज में आग लग गयी और सारे यात्री जलकर मर गये। केवल कैथलीन बुरी तरह जलने के बाद भी जिंदा बच गयीं।
इसके पाँच वर्ष बाद 5 जनवरी 1959 को कैथलीन रेल में यात्रा कर रही थीं। वह रेल के आखिरी डिब्बे में बैठी थीं। डिब्बे में दस-बारह यात्री थे। रात का समय था और कैथलीन ऊँच रही थीं। अचानक उनकी आँख खुली। आँख खुलने के दो मिनट बाद ही जोर का धमाका हुआ। पीछे से आने वाली गाड़ी का इंजन कैथलीन के डिब्बे से टकरा गया था। डिब्बा चकनाचूर हो गया, उसके सभी यात्री मर गये पर कैथलीन फिर भी बच गयीं।
सन् 1963 में कैथलीन जार्जिया के एक छोटे से होटल में छुट्टियां मना रही थीं। एक दिन पहाड़ से कोई 80 मन का पत्थर लुढ़कता हुआ होटल की इमारत पर आ गिरा। वह पत्थर होटल के जिस भाग पार गिरा था उसमें बैठे हुए पाँच व्यक्ति उसी समय मर गये। कैथलीन भी वहीं बैठी थीं, पर इधर पत्थर का गिरना हुआ था कि उधर कुछ ही क्षण पूर्व कैथलीन उस भाग से निकल रही थीं। एक बार जब वह घर वापस आ रही थीं उसकी कार का एक्सिडेंट हो गया जिसमें कार ड्राइवर मर गया तथा उसमें बैठे सात अन्य व्यक्ति बुरी तरह घायल हो गये परन्तु कैथलीन को खरोंच तक नहीं आयी थी।
सन् 68 में कैथलीन अपनी कुछ सहेलियों के साथ एक दावत में गयीं। इस दावत में जो भोजन परोसा गया था वह विषाक्त हो गया था अतः जिन व्यक्तियों ने दावत खायी वे सभी मर गये किन्तु कैथलीन पर उस विषाक्त भोजन का कुछ भी असर नहीं हुआ। इस काण्ड की जाँच हुई और पता चला कि कैथलीन भी उस दावत में सम्मिलित हुई थीं। उसके आमाशय की जाँच की गयी। डॉक्टर यह जानकर हैरान हुए कि उसके पेट में भी वही भोजन है फिर वह बच कैसे गयीं?
श्रीमती कैथलीन के साथ घटी ये घटनाएँ, आने वाले आकस्मिक संकट और आकस्मिक सुरक्षा प्रबन्ध का कोई विश्लेषण नहीं किया जा सकता। इस सम्बन्ध में इतना ही कहा जा सकता है कि कई बार अदृश्य शक्तियाँ किन्हीं कारणों से मनुष्य को बड़े-बड़े खतरों से भी बचा ले जाती हैं। यह उनका उपकार ही कहा जाना चाहिए। यों भी कहा जा सकता है कि मारने वालों से बचाने वाला बड़ा और समर्थ होता है। लेकिन यह प्रश्न तो फिर भी अपने स्थान पर ही है कि इन दुर्घटनाओं में अदृश्य शक्तियाँ कैथलीन की ही रक्षा क्यों करती रहीं?
पिछले दिनों स्विट्जरलैण्ड की एक 68 वर्षीय महिला अपने पति के साथ कार में जा रही थी। रास्ते में कार दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। दुर्घटना कोई गम्भीर नहीं थी परन्तु उसके कारण महिला गूँगी हो गयी। पति ने कितना ही उपचार कराया, कोई लाभ नहीं हुआ। वर्षों तक वह गूँगी ही बनी रही। आधुनिकतम उपचार आदि सबका सहारा लिया गया। परन्तु सभी व्यर्थ सिद्ध हुए। एक दिन पति-पत्नी दोनों अपने मकान की छत पर बैठे थे, तभी आकाश में नीचे को मंडराते हुए एक जेट यान उधर से गुजरा। जेट जब उस मकान की छत से गुजर रहा था तो जेटयान ने एक धड़ाके के साथ गति बढ़ाई। उस धड़ाके ने प्रत्येक व्यक्ति को चौंका दिया। पर साथ ही उस गूँगी महिला के मुख से ‘हे भगवान’ शब्द निकला और उस गूँगी वृद्धा को फिर वाणी मिल गयी।
बाईस वर्षीया जीन हेजीज बचपन से ही बहरी हो गयी थीं। वह बोल तो सकती थीं परन्तु किसी दुर्घटना में श्रवण शक्ति जाती रहने के कारण वह दूसरे क्या कह रहे हैं, जरा भी सुन नहीं पाती थीं। वह फोम बनाने के एक कारखाने में काम किया करती थीं। इसे वर्षों हो गये थे काम करते हुए, इस दौरान उसे कई बार छींकें भी आयीं, खाँसी भी उठी और सर्दी जुकाम भी हुआ। परन्तु एक दिन जब वह अपने दफ्तर में काम कर रही थी तो उसे जोर की छींक आयी। छींक के कारण उसकी आँखों से आँसू निकल आये। परन्तु तभी उसे वर्षों बाद अचानक अपनी साँस लेने की आवाज सुनाई दी और अपने आस-पास काम कर रहे मित्रों और सहेलियों की बातचीत भी।
इसके बाद तो उसे जैसे छींकों का दौरा ही पड़ गया और प्रत्येक छींक उसकी श्रवण शक्ति को सतेज बनाती जा रही थी। छींकों का दौरा जब समाप्त हुआ तो वह भली-भाँति सुन सकती थी, इससे पूर्व बचपन में जब वह किसी दुर्घटना में बहरी हो गयी थी, अभिभावकों ने उसका बहुत इलाज कराया परन्तु उसका बहरापन नहीं गया तो नहीं ही गया। डॉक्टरों का कहना था कि बहरेपन को दूर तभी किया जा सकता है जबकि उसके कान का आपरेशन किया जाय। इस चीर-फाड़ को जोखिम पूर्ण बताया जा रहा था और फिर भी इस बात की पूरी सम्भावना नहीं थी कि सफलता मिल ही जायेगी। इस लिए माता-पिता ने उसका आपरेशन नहीं ही कराया और एक दिन यह समस्या बिना किसी हस्तक्षेप के सुलझ गयी।
जिस प्रकार अविज्ञात कारण से कभी-कभी मनुष्य पर अप्रत्याशित विपत्तियाँ टूट पड़ती हैं और प्रत्यक्ष कोई कारण न होने पर भी दुर्घटना स्तर का संकट सहन करना पड़ता है। उसी प्रकार कभी-कभी विपत्तियों से उबरने वाली ऐसी अदृश्य सहायताएँ भी अनायास ही मिलती देखी गई हैं जिसकी न कभी कोई आशा थी न सम्भावना।
इन घटनाक्रमों के पीछे सन्निहित अविज्ञात कारणों को आमतौर से प्रारब्ध, संयोग आदि कहकर किसी प्रकार समाधान कर लिया जाता है, फिर भी आस्तिक व्यक्ति इन विपत्तियों को अपना कर्मफल और सुविधा, सफलताओं को ईश्वर का अनुग्रह मानते हैं। इस संदर्भ में परोक्षवादी किन्हीं अदृश्य आत्माओं का भी हाथ देखते हैं जो पूर्वकाल के घटनाओं को ध्यान में रखकर प्रतिशोध लेती और कष्ट पहुँचाती हैं। साथ ही उच्चस्तरीय आत्माएँ अपने सम्बद्ध आत्मीय जनों को समय-समय पर अपनी सामर्थ्यानुसार लाभान्वित भी करती रहती हैं। जो कुछ भी हो अन्ततः अपने सत्कर्म-दुष्कर्म ही सामान्य घटनाक्रमों की भाँति अप्रत्याशित घटनाओं की पृष्ठभूमि बनाते हैं एवं यह मायावी संसार रचते हैं।