एक ब्राह्मण से प्रजा का यह दुःख न देखा गया। उसने राजा की इस आदत को छुड़ाने का संकल्प लिया। एक दिन राजा की सवारी जा रही थी तो उन्होंने देखा कि राजपथ पर भीड़ लगी हुई है। कारण पूछने पर पता लगा कि कोई व्यक्ति मदिरा बेच रहा है। राजा ने सोचा कि देखें उस व्यक्ति की मदिरा में कौन-सी ऐसी विशेषता है जिसके कारण इतने व्यक्ति इकट्ठे हो गये हैं। राजा ने उसके पास अपना रथ रुकाने का आदेश दिया। राजा ने निकट आने पर ब्राह्मण की आवाज सुनी- “जिसे पतन के गर्त में जाना है वह इस मदिरा को अवश्य लें। इसे पीते ही अपना होश खो बैठोगे, नाली में मुँह दोगे, कीचड़ मुँह पर लपेटोगे, कुत्ते मुँह में पेशाब करेंगे। इसे पीकर स्त्री अपने पति को पीटेगी। धनवान् गरीब हो जायेंगे, पैसे-पैसे के लिये दूसरे का मुँह देखेंगे। इसे पीकर अपना काम भूल जाओगे और बौराते फिरोगे।”
राजा ने ब्राह्मण की बात सुनकर पूछा- ‘आप तो इसके अवगुण निरन्तर बताये जा रहे हैं। इस तरह कौन मदिरा खरीदेगा।’
ब्राह्मण बोला- ‘राजन् जब वस्तु में अवगुण ही हैं तो मैं गुण कहाँ से बताऊँ। मैं स्पष्टवादी हूँ, जो सच है वही कहूँगा।’ ‘पर इस तरह तो तुम्हारी तनिक भी बिक्री न होगी।’ राजा ने कहा।
‘सामान्य प्रजा नहीं खरीदेगी, पर प्रशासक और अधिकारीगण तो खरीदेंगे जिससे इसे पीकर वे प्रजा पर और भी अत्याचार कर सकें।’
पल भर में राजा के सम्मुख अपने राज्य का सारा चित्र स्पष्ट हो गया। वह ब्राह्मण के चरणों पर गिरते हुए बोला- ‘महाराज! आपने मुझे पतन के रास्ते से बचा लिया है। आपकी बातें सुनकर मेरी आँखें खुल गयी हैं। आज से मैं पाप की इस जड़ को छूऊँगा भी नहीं।
‘वत्स तुम्हारा कल्याण हो।’ मुस्कराते हुए ब्राह्मण देवता ने आशीर्वाद दिया। उनका प्रयोजन पूरा हो चुका था।