समाज में ऐसे कितने ही अपंग व्यक्ति हुए हैं जिन्होंने समाज पर आश्रित न होकर आत्म-विश्वास और पुरुषार्थ के बलबूते पर अपने परिवार का भरण-पोषण और समाज के उत्थान का मार्ग प्रशस्त किया है। उन्हीं में से स्टेगमान भी एक हैं।
स्टेगमान अल्पायु में ही पक्षाघात के शिकार हो गए थे। कुछ बड़े होकर उनने कला विद्यालय में प्रवेश लिया जहाँ उन्होंने मुख में कूँची दबाकर चित्र बनाना आरम्भ कर दिया। उनकी मान्यता थी कि कोई कलाकार हाथ से चित्र नहीं बनाता वरन् हृदय की गहराई से निकली हुई भावना ही कागज पर अपने वास्तविक रूप से साकार होती है। उन्होंने अपने प्रयत्नों द्वारा यह सिद्धकर दिया कि कोई भी व्यक्ति हाथों के अभाव में कलाकार बनने से वंचित नहीं रह सकता। आवश्यकता है स्वयं में प्रतिभा और दृढ़ संकल्प की। चित्रकारी के बाद स्टेगमान ने मूर्तिकला का अभ्यास किया और मुख तथा पैर की सहायता से बड़े सुन्दर चित्र बनाने शुरू कर दिए। इंग्लैंड के इस कलाकार ने लाइसतेन्सतीन में मुख और पैर से मूर्तियाँ बनाने वालों का एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था के रूप में संघ स्थापित किया। उस असहाय बालक का बचपन का स्वप्न धन और यश को पाकर आज पूर्ण रूप से साकार हो रहा है।