बलिदान- जो सार्थक हो गया

November 1981

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वैशाली महानगरी आज दुल्हन की भाँति सजी थी। सर्वत्र हर्ष उल्लास का वातावरण था। राज्य महोत्सव मनाने के लिए यह सब तैयारियाँ हुई थीं। बाल-वृद्ध, नर-नारी सभी महोत्सव में भाग लेने के लिए राजमहल के समीप प्राँगण में एकत्रित हुए थे। राज्य नर्तकी का नृत्य आरम्भ हुआ। नृत्य की मस्ती में धीरे-धीरे राजा और प्रजा सभी डूबते जा रहे थे।

अचानक महल में लगे विशाल घण्टे की आवाज ने सबका ध्यान तोड़ा। पर यह क्या? घण्टा तो निरन्तर ही बजता जा रहा था। राज परम्परा के अनुसार घण्टे का निरन्तर बजना आने वाले संकट का परिचायक था जिसका अर्थ होता था कि शत्रु ने राज्य पर आक्रमण कर दिया है। नृत्य अपने-आप थम गया ओर देखते ही देखते युद्ध की रणभेरी वातावरण में गूँजने लगी। पर शत्रु की विशाल सेना और पूर्व तैयारी न होने से वैशाली के सैनिकों के पैर उखड़ने लगे। राजा को बन्दी बना लिया गया। शत्रु सेना वैशाली नगर पर कहर ढाहती निरन्तर आगे बढ़ रही थी। लूट-पाट एवं बाल-वृद्धि, नर-नारियों ही हत्या से वातावरण चीत्कार कर उठा।

नगर नायक ‘महायायन’ कभी-अपनी शूरवीरता के लिए विख्यात था। पर आज तो वह भी अपने को असमर्थ पा रहा था। वृद्धावस्था के कारण उसका अपना शरीर भी साथ नहीं दे रहा था। तो क्या हमारी आँखों के सामने ही यह अत्याचार होता रहेगा? नहीं ऐसा नहीं हो सकता, यह सोचकर वृद्ध नायक चल पड़ा शत्रु सेनाध्यक्ष से मिलने।

रास्ता रोके खड़े वृद्ध को शत्रु सेनाध्यक्ष ने हटने का आदेश दिया। ‘महायायन’ की आंखें दृढ़ता से चमक उठी। उसने कहा ‘आगे बढ़ने के लिए तुम्हें मेरी लाश से गुजरना होगा- मेरे सामने तुम बाल-वृद्ध, नर-नारियों पर अत्याचार नहीं कर सकते। शत्रु सेना नायक को वृद्ध जानकर दया आ गई। उसने कहा “रास्ता छोड़ो। हम तुम और तुम्हारे परिवार की सुरक्षा का वचन देते हैं। महायायन को लगा जैसे किसी ने उसके स्वाभिमान पर थप्पड़ मार दिया हो।” उसने कहा ‘मुझे अपने जीवन का लोभ नहीं है। यदि तुम्हें दया दिखानी ही है तो इन मासूमों पर अत्याचार बन्द करो।’

शत्रु सेना नायक को जाने क्या सूझी उसने ‘महायायन’ के समक्ष एक विचित्र शर्त रखी। “तुम जितनी देर सामने बह रही नदी में डूबे रहोगे हमारी सेना लूट-पात एवं हत्या बन्द रखेगी।” शर्त स्वीकार कर अविलम्ब वृद्ध महायायन नदी में कूद पड़ा। वचनबद्ध शत्रु सेना नायक ने सेना को तब तक के लिए लूटपाट एवं संहार बन्द रखने को कहा जब तक कि वृद्ध का सिर पानी के बाहर न दिखायी पड़े। विशाल सेना, सेनाध्यक्ष के नेतृत्व में महायायन के बाहर निकलने की प्रतीक्षा बेचैनी से कर रही थी। प्रातः से दोपहर हुई और फिर शाम होने को आई पर वृद्ध महायायन पानी में डूबा और डूबा ही रहा। सेना नायक को आश्चर्य हुआ। उसने गोताखोरों को वृद्ध का पता लगाने को कहा। लम्बी खोज-बीन के बाद नदी की गहराई में महायायन का मृत शरीर चट्टान से लिपटा पाया गया। उसने दोनों हाथों से चट्टान को मजबूती से पकड़े ही दम तोड़ दिया था।

इस अनुपम त्याग एवं बलिदान को देखकर शत्रु सेनानायक का हृदय भी द्रवित हो उठा। आँखों से अश्रु धारा बह चली। मानवता के इस वृद्ध पुजारी के समक्ष अपनी हार स्वीकारते हुए उसने सैनिकों को लूट की वस्तुओं को वापिस देने तथा अपने राज्य की ओर वापिस लौटने का आदेश दे दिया।


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