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(श्री प्रफुल्लचन्द्र पट्टनायक)
तुम फटा काल निशि दूर हुई,
रवि आया मंगल ध्वज फहरा।
बदले उलूक फड़फड़ा पंख,
उड़ गया किधर हँस उठी धरा॥
खोला नवयुग ने आरुण पलक,
गया रच नव नव गीत छन्द।
पाया मानव ने आत्मिक बल,
उठ गये जगत से मीत बन्ध॥
(2)
युग युग के बंधन छिन्न हुए,
मानव जो व्याकुल भीत त्रस्त।
फिर अभय उसे वरदान मिला,
बह उठा जो पड़ा मोह ग्रस्त॥
चल पड़ा देख स्वच्छन्द बात,
गाते पद कोमल सर सर सर।
लाया प्राणों में मधुर गन्ध,
किस वन उपवन तरु से भर भर॥
(3)
इस नील व्योम से गूँज उठा,
ओंकार प्रणव का महा मन्त्र।
लग गयी वन्हि हो गये क्षार,
संस्कृति नाशक विज्ञान यन्त्र॥
स्वागत हे नव युग सत्य रूप,
हे चिर मंगलमय स्नेह सिन्धु।
हे दया क्षमामय ताप हरण,
अज्ञान तिमिर के शरद इन्दु॥
-संघर्ष