प्रसव की वेदना

January 1942

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(वर्तमान दुखद स्थिति में स्वर्णयुग की झाँकी)

‘कष्ट’ का दार्शनिक अर्थ है -”सुख की पूर्व सूचना” एक तत्वदर्शी का अनुभव है कि जब देवताओं की पृथ्वी पर विशेष कृपा होती है तो वे अकाल, भूकम्प रोग, युद्ध आदि भेजते हैं जिससे कि विश्व की सुप्त सात्विक शक्तियाँ पुनः जागृत हो जावें और संसार में सुख शान्ति की वृद्धि हो। परमात्मा जिसे कष्ट दे रहे हों, समझना चाहिये कि कोई अदृश्य सत्ता इसका आपरेशन करने में जुटी हुई है। माता को जब सन्तान सुख प्राप्त होने को होता है तो उसे कुछ समय पूर्व प्रसव वेदना सहनी पड़ती है। कुएं में जब पानी कम रह जाता है तो उसे खोदकर गहरा करते हैं ताकि अधिक पानी हो जावे। चाकू जब भोथरा हो जाता है तो उसे पत्थर पर घिसा जाता है ताकि उसकी धार तेज हो जावे। सोने के टेढ़ा मेढ़ा टुकड़ा जब आभूषण बनने को होता है तो सब से प्रथम उसे भट्टी में तपना पड़ता है। लोहा घन की चोट सहे बिना हथियार की शकल में नहीं आता। पत्थर से पूजनीय मूर्तियाँ तब बनती है तब छैनी की लाखों चोट उस पर पड़ लेती हैं। मिट्टी के बर्तन अबा में पक कर पक्के होते हैं। फूल सुई से छिदने के बाद देवताओं के गले में पड़ने लायक हार बन जाता है। चन्दन जब घिसा जाता है तब सिर पर लगाने के काम आता है। कपड़ा पत्थर पर चोटें खा कर उजला होता है। बीज पहले स्वयं गल जाता है तब वृक्ष बनता है। कहाँ तक कहें संसार में कोई भी ऐसा सुख नहीं है जो बिना कष्ट के प्राप्त होता हो। कष्ट एक क्रिया है तो सुख उसका मधुर फल।

परिवर्तन काल हमेशा ऐसे ही आता है जब कुछ दुख हो। जब ऋतुएं बदलती हैं तो लोग अस्वस्थता का अनुभव करते हैं। क्वार और चैत्र के महीने में दो विरुद्ध ऋतुएं आपस में मिलती हैं फलस्वरूप उन दिनों फसली बुखार आदि बीमारियाँ फैलती हैं। मनुष्य एक शरीर छोड़कर दूसरा ग्रहण करता है तो उसे स्वयं मृत्यु कष्ट सहना पड़ता है दूसरों को बिछोह कष्ट राज क्रान्तियाँ, धार्मिक परिवर्तन समाजिक हेर फेर यह बड़े उत्पातों को अपने साथ लाते हैं, कितने ही दोषी और निर्दोष व्यक्ति इनके चक्र में पिस कर चूर चूर हो जाते हैं। जब पेट में बहुत खराबी इकट्ठी हो जाती है तो उलटी या दस्तों की बीमारी पैदा होती है, खून खराब हो जाने पर फोड़े फुन्सी निकल पड़ते हैं। तात्पर्य यह है कि हर परिवर्तन के आगे आगे एक तूफान आता है, जैसे बरात में आगे आगे घोड़े होते हैं। उस प्रकार क्रान्ति संध्या में कष्ट और वेदना का अस्तित्व रहता है। इन कष्टों को हम प्रसव वेदना कह कर पुकार सकते हैं।

कलियुग का अन्त और सतयुग का आरम्भ होने जैसा महान परिवर्तन क्या यों ही बिना किसी कष्ट के हो जायेगा? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता जितना बड़ा कार्य होता है उसी के अनुरूप वेदना भी अवश्य होती है। कल्पान्त में महाप्रलय होती है। मन्वन्तर के अन्त में खंड प्रलय होती है और युगान्त में प्रलयवत् दृश्य उपस्थित होते हैं। नाश की पीठ पर ही निर्माण की आधार शिला रखी जाती है।

सैंकड़ों वर्ष पूर्व से यह कहा जा रहा था कि संवत् दो हजार के आस पास कोई बड़ा विग्रह उत्पन्न होगा जिस के पश्चात् युग परिवर्तन होगा। यह घड़ी किसी से टाली न जा सकी। बड़े बड़े शान्ति प्रिय लोगों के प्रयत्न निरर्थक हुए। आज से 25 वर्ष पूर्व एक महायुद्ध हुआ था, और महामारी में असंख्य लोग मरे थे अन्य तरीकों से भी बड़ा नाश हुआ था। महाकाल ने एक हलकी लात मार कर दुनिया को सावधान किया था, पर वह चेती नहीं। इसलिये अब दूसरा आपरेशन करना पड़ा है। यह पहले की अपेक्षा बहुत भयंकर है। अभी तो इसका आरम्भ ही है, अन्त तक बहुत विनाश कर देगा और दुनिया के कान अच्छी तरह ऐंठ देगा कि खबरदार! आगे ऐसी गलती मत करना और सीधे रास्ते पर चलना। चाबुक खाकर जैसे अड़ियल घोड़ा अपनी हठ छोड़ देता है वैसे ही इस दुनिया को भी अपनी हरकतें दुरुस्त करनी होंगी।

कलिकाल में हुए पापों के लिये सभी सृष्टि जिम्मेदार है, क्योंकि मनुष्य जाति समाजजीवी होने के कारण अपने पड़ौसी के पापों की भी उत्तरदायी होती है। चोर चोरी कर रहा हो और दूसरा व्यक्ति चाहे वहाँ खड़ा है उसका विरोध न करे तो वह भी कानूनन दोषी ठहराया जाता है और दंड का भागी बनता है। आपके पड़ौसी बुरे कर्म करें और आप उन्हें पत्थर की आँखों से देखते रहें तो आप निर्दोष नहीं कहे जा सकते। पिछले युग में जो अधर्म पाप और दुष्ट कर्म हुए हैं उनके करने वाले तो सजा पावेंगे ही साथ ही समष्टि रूप से एक सूत्र में बंधी हुई होने के कारण समस्त सृष्टि भी दंड प्राप्त करेगी। आज वही दंड मिल रहा है। भिन्न भिन्न प्रकार की आपदाएं इस समय मनुष्य जाति पर आ रही हैं, यह हमारे पिछले कर्मों का दण्ड है। अब भगवान चाहते हैं, कि पूर्व पापों का दण्ड भोग कर वह शुद्ध हो जाये और भविष्य में नवीन व्यवस्था का आनन्द भोगें।

वर्तमान समय के अनेकानेक कष्ट एक प्रकार की प्रसव वेदना है, जिसके पश्चात् छाती को ठंडी करने वाला पुत्र रत्न प्राप्त होगा। इस रत्न का नाम होगा -’सतयुग‘।


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