चमत्कार को नमस्कार

January 1942

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(बुद्धिहीनों की प्रमुख कसौटी)

बुद्धिहीनों की एक ही प्रमुख कसौटी है कि वे गिरह की अकल न होने की वजह से चमत्कार को नमस्कार करते हैं। दुनिया के धूर्त और चालाक आदमी अन्धी भेड़ों की इस कमजोरी का भरपूर फायदा उठाते हैं। नये-नये जाल, फरेब, धोखे, षड़यन्त्र, झूठ प्रचार, मिली भगत आदि अनेक जरियों से तिल को ताड़ बना कर खड़ा कर देते हैं। पहले वे ढोंग और आडम्बर का चमकीला जाल खड़ा करते हैं, फिर उसमें भोली-भाली चिड़ियों को फंसा कर मजे में हलाल करते हैं।

संसार के पिछले इतिहास पर नजर डाली जाय तो उपरोक्त पंक्तियों की सत्यता के प्रमाण पग पग पर भरे हुए मिल जाते हैं। गाँव-गाँव में ऐसे देवी देवता पूजे जाते हैं, जो अप्रसन्न होने पर दण्ड देते, बीमार कर देते है या कुछ और उपद्रव करते हैं। यदि किसी से कहा जाय कि किसी ऐसे देवता की पूजा करो, जो हमारा हानि लाभ कुछ नहीं करता तो शायद कोई उसे पूजने को तैयार न होगा। पिछले दिनों जितने सिद्ध महंत पूजे हैं, उनके पीछे भी किसी अलौकिक चमत्कार का पुछल्ला जरूर बाँधा गया है। कई मजहब तो इसलिए चल पड़े कि उनके प्रवर्तक चमत्कारी समझे जाते थे। फिर किसी को क्या जरूरत थी कि उनके सिद्धान्तों के बारे में पूछ-ताछ करे। इस प्रकार अनेकों पंथ, अनेकों गिरोह, अनेकों अवतार, अनेकों पूजा संस्थान अब तक बने हैं। इनमें से कितने ही पाखंड अब तक फल फूल रहे हैं।

इतिहास के तत्वज्ञों का कहना है कि यह चमत्कारी षडयन्त्र मनुष्य के अविकसित मस्तिष्क की उपज है। जब वह तर्क और युक्तियों से दूसरों को प्रभावित करने में असमर्थ होता है तो ऐसे प्रसंग गढ़ता है, जिनके कारण जनता की सम्पूर्ण बुद्धि ही मोहित हो जावे और तर्क वितर्क करने, सोच विचार में पड़ने की आवश्यकता छोड़ कर अन्धाधुन्ध अनुयायी बन जावे। दुनिया का प्राचीनतम इतिहास ऐसी ही चमत्कारी घटनाओं से भरा हुआ है। सभी मजहबों की पुरानी किताबें ऐसी कथाएं वर्णन करती है जो साधारण जीवन में असंभव है। हिन्दुओं के मत्स्यावतार, कूर्मावतार, वाराहवतार आदि बहुत पहले हैं, इसके उनके चमत्कार अधिक है। जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे ही वैसे इन असंभव घटनाओं की मिलावट क्रमशः कम होती गई। भगवान राम के चरित्र में चमत्कार कम है, वे मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में हमारे सामने आते हैं। कृष्णा के अवतार में भी पहले अवतारों की अपेक्षा अलौकिकता कम है। भगवान बुद्ध के इतिहास में तो वह बहुत ही कम हो गई है और अब तो समय ने उसका विरोधी वातावरण तैयार कर दिया है। अब से सौ वर्ष पहले किसी साधु फकीर को बाजीगरी करतब करते देखते थे, तो लोग उसके पाँवों पर नाक रगड़ते थे, पर आज तो उसकी माया को मिनटों में ताड़ लिया जाता है और ऐसी खिल्ली उड़ाई जाती है कि बेचारे के पैर टिकना मुश्किल हो जाते हैं।

यों तो अन्धी भेड़ों का अभी बीज नाश नहीं हुआ है। महात्मा गाँधी तक के बारे में लोग कहते सुने जाते हैं कि वे जेल में भी बन्द रहते हैं और बाहर भी घूमते हैं, अभी हिन्दुस्तान में है तो अभी विलायत में दिखाई देते है। जिन्हें चमत्कारों की चर्चा में ही आनन्द आता है, उनकी कल्पना-शक्ति उन्हें मुबारक रहे। पुराने समय में उनके भाई बन्धुओं ने एक से एक बढ़ कर विचित्र कल्पनाएं की थी। अब वे अपने सन्तोष के लिए वैसा कर सकते हैं। चमत्कार- चर्चा के बिना जिनकी तृप्ति नहीं होती, उनके लिए वर्तमान समय में भी बहुत बड़ा क्षेत्र मौजूद है। तिलस्मी और ऐय्याशी के उपन्यास बाजारों में खूब बिकते हैं, उन से मन बहला सकते हैं। परन्तु वह बड़ा ही अनर्थ होगा कि उस बालवृति को मनुष्य जाति के भाग्य निर्माण में रोड़ा बना कर खड़ा कर दिया जाय। अब मनुष्य जाति से उतनी बाल बुद्धि की आशा नहीं की जाती है।

निश्चय ही अब या अब से आगे कोई व्यक्ति चमत्कारों की पीठ पर खड़ा होकर महान नहीं बन सकता। आधुनिक भौतिक विज्ञान ने मनुष्य जाति की बड़ी बड़ी कठिन कल्पनाओं को भी प्रकट करके दिखा दिया है और आगे इससे भी अधिक चमत्कारी विज्ञान प्रकट होने वाले हैं जादूगरों और बाजीगरों के वे वे करतब हमने देखे हैं जो कुछ शताब्दी पूर्व होते तो वे ईश्वर की करामात ही समझे जाते। ऐसे बड़े बड़े धर्म संघों के भयंकर भण्डा फोड़ हो चुके हैं, जिनमें मिली भगत का बड़ा भारी षडयन्त्र रच कर जनता को खूब लूटा खसोटा जाता था अब कोई चमत्कारी प्रपंच फल फूल नहीं सकता। जो व्यक्ति ऐसा समझते हों कि कलंकी अवतार बड़ी भारी बाजीगरी करता हुआ प्रकट होगा, तो उन्हें गिरह बाँध लेना चाहिए कि ऐसा अवतार कल्पान्त तक अब नहीं होगा।

वर्तमान बुद्धि ने यह स्वीकार किया है कि अवतार संसार का कल्याण करने के लिए आते हैं और उनकी महत्ता सचाई, प्रेम न्याय में होती है। उनका चरित्र आदर्श होता है। वे ऐसे कार्य करते हैं जिससे विश्व में शान्ति स्थापित हो। गत दो हजार वर्षों से दुनिया ने इस बात पर स्वीकृति की मुहर लगादी है कि हमें चमत्कारी नहीं आदर्श आत्मा चाहिए। भगवान बुद्ध और भगवान महावीर के चरणों पर दुनिया ने माथा टेक दिया। किसी ने उनसे नहीं पूछा कि तुम विमान में बैठ कर स्वर्ग से उतरे हो या नहीं? उनके आदर्शों के कारण उन्हें अवतार का पद दे दिया गया। भगवान ईसा ने उस मूर्खता की एक और कड़ी तोड़ डाली। पिछले समय में सफल और विजेताओं के गले में ही जय माला पहनाई जाती थी। पर संसार ने अपनी भूल अनुभव की और उस पराजित सताये हुए, फाँसी पर टाँगे हुए के चरणों पर भी श्रद्धाँजलि चढ़ा दी। अब तो अवतार के लिए विजेता होने की भी शर्त नहीं रही। जहर का प्याला पीने वाले सुकरात को हम सिर आँखों पर रखते हैं। लोक हित के कार्यों में बलिदान हुई आत्माओं के पदचिह्नों पर आज की पीढ़ी अपने अश्रु बिन्दु टपकाती हुई मानवोचित कृतज्ञता प्रकट करती है।

इस युग के अवतारी पुरुष बाजीगरी नहीं करेंगे और न सफल होने की शर्त उन्हें माननी होगी। सत्य सिद्धान्त, आदर्श चरित्र, लोक कल्याण का प्रयत्न, बस इन्हीं तीन कसौटियों पर अवतारी आत्माओं को परखा जायेगा और जो जितनी खरी होगी, उसका उसी अनुपात से अधिकाधिक आदर होगा। ऐसे अवतारी पुरुष, आज मौजूद हैं और आगे होने वाले हैं। सत्य सिद्धान्तों के आधार पर संसार में उनका उतना ही आदर होगा, जितना कि किसी समय चमत्कारी कल्पनाओं के आधार कोई महापुरुष पूजनीय माने गये थे।


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