(परमहंस राजनारायण जी षट्शास्त्री)
सम्वत् 1992 विक्रम तक यमुना जी की शेष आयु 4538 वर्ष है। अब श्री यमुना जी का पुण्य तथा महात्म्य रहेगा और हरिद्वार की जगह ब्रजधाम (मथुरा तथा वृन्दावन) को सतयुग का तीर्थ माना जायेगा।
सतयुग का तीर्थ पुष्कर था, त्रेता का नैमिषारण्य था, द्वापर का कुरुक्षेत्र था और कलियुग का तीर्थ गंगा थी, सो उसके पुण्य की आयु सम्वत् 1956 में समाप्त हो चुकी है। अब सतयुग का तीर्थ यमुना है, जिसके किनारों पर पूर्ण ब्रह्म भगवान कृष्णचन्द्र बालकपन से खेलते फिरते थे, अब आगे जितने पर्व, कुम्भ इत्यादि आएं, वह सब मथुरा वृन्दावन में ही होने चाहिए।
शहर देहली और मथुरा एक बार फिर उन्नति के शिखर पर पहुँचेंगे।
कथा-