अवतार कैसे होगा?

January 1942

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(अवतार के प्रकट होने का कार्यक्रम)

पतित पावनी भगवती गंगा का जब अवतार हुआ था- स्वर्ग से जब वे भूलोक पर उतरी थीं तो उन्होंने भागीरथ को इच्छापूर्ण वरदान देते हुए भी यह पूछा था कि मैं किस प्रकार भूलोक पर पहुँचूँ? स्वर्ग और पृथ्वी के बीच में बड़ा भारी अन्तर है, इतनी दूरी से जब में उतरुंगी तो भूमि मेरा वेग सहन न कर सकेगी। मैं जहाँ गिरूंगी वहाँ इतना बड़ा गड्ढा हो जायेगा कि समुद्र भी उसकी तुलना में छोटे प्रतीत होंगे। फिर तुम जिस भूखण्ड की शान्ति के लिए मुझे ले चलना चाहते हो वह भी जलमग्न हो जायेगा और और तुम्हारा उद्देश्य पूरा न हो सकेगा।

भागीरथ बड़ी चिन्ता में पड़े। क्योंकि भगवती का कथन अक्षरशः सत्य था। स्वर्ग से एक दम पृथ्वी पर कूदना खतरनाक है। इसकी प्रतिक्रिया बड़ी भयानक हो सकती है और लाभ के स्थान पर हानि का परिणाम मिल सकता है। गंगा को पृथ्वी पर उतरना तो था ही, उन्होंने भागीरथ की चिन्ता निवारण करते हुए भूतनाथ शिव के पास जाने की सलाह दी। भागीरथ, शंकर जी के पास पहुँचे और सारा वृत्तांत कह सुनाया। शिवजी ने स्थिति की महत्ता को समझा तो यह निश्चय किया कि जब गंगा उतरेगी तो उन्हें अपने शीश पर लेंगे और फिर कैलाश पर उतारेंगे, तदुपरान्त धीरे धीरे तपो भूमियों में होते हुए आगे बढ़ने देंगे, अन्त में तो वह छोटे मोटे नदी नालों को अपने में मिलाती हुई आगे चली जायेगी। खारी जल और अभिमानी समुद्र उनके स्वागत के लिए न उठेगा तो न सही भगवती अपनी सहज उदारतावश उस अचेतन का भी कल्याण करने के लिए स्वयं उसके पास तक चली जावेगी। इसी निश्चित योजना के अनुसार कार्य करके शिवजी की सहायता से गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर उतारा गया।

कथा के अलंकारिक रूप में रहस्यमय तत्व यह छिपा हुआ है कि ज्ञान गंगा एक दम स्थूल प्रकृति पर कार्य रूप में प्रकट होती हुई दिखाई नहीं दे सकती। क्योंकि भलाई और बुराई के बीच में बहुत फासला है, यह फासला धीरे धीरे दूर करना होता है। एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी का क्रम पार करके चढ़ना उतरना आसान है। इसके विपरीत छलाँग मार कर चढ़ना या चौकड़ी मार कर कूदना दोनों ही खतरनाक हैं, इससे इच्छित फल की प्राप्ति नहीं होती। यदि कोई वेदान्ती ज्ञान को एक दम व्यवहार में ले आवे तो वह करीब करीब पागल बन जायगा मैं ब्रह्म हूँ, सम्पूर्ण जगत ब्रह्म है, जीव मात्र ब्रह्म है इस सत्य सिद्धान्तों को यदि एक दम कोई व्यवहार में लावे तो कुत्ते सुअरों के पाँवों पर लोटता फिरेगा डाकू और हत्यारों का भी विरोध न करेगा, टट्टी घर को मंदिर समझता हुआ उनकी आरती उतारेगा या इसी प्रकार के और उद्धत कार्य करेगा। आचरण शास्त्र में मानव नीति का एक सर्वोत्तम श्लोक है कि

मातृवत् परदारेषु पर द्दव्येषु लोष्टवत्।

आत्मवत् सर्व भूतेषु योपश्यति सपश्यतः।

पराई स्त्रियों को माता के समान, पराये धन के ठीकरी के समान और अपने समान सब प्राणियों को समझना इसमें धर्म का सारा तत्व निहित है पर कोई मूर्ख इन्हीं सिद्धान्तों को ज्ञान भूमिका में उतारे बिना एक दम कर्म कर्म में परिणित कर दे तो उसे जेल खाने ही जाना पड़ेगा या बाजार में जूतों से पिटता फिरेगा। ठीकरी को तो यों ही उठा कर फेंक देते है जरा पराई थैली को तो नाली में पटक कर देखिये। सिंह, सर्प, व्याघ्र आदि को जरा आत्मवत् समझिए तो सही देखिए कैसा मजा आता है भगती गंगा को पहले शिवजी ने अपनी जटाओं में उतारा फिर कैलाश पर और तदुपरान्त पृथ्वी पर, आप ज्ञान गंगा को पहिले अपने मस्तिष्क में उतारिए, फिर वचन में तदुपरान्त कर्म में।

सत्य नारायण भगवान अपने निष्कलंक रूप को पहले पहले ब्रह्म लोक में प्रकट करेंगे। मनुष्य के मस्तिष्क में शुद्ध ज्ञान के प्रति आकर्षण पैदा होगा, उनकी रुचि ईश्वर और आत्मा की ओर झुकेगी, धर्म और ज्ञान की चर्चा में आनन्द प्राप्त होगा, तदुपरान्त भगवान स्वर्ग लोक में उतर आवेंगे। ज्ञान गंगा शिव की जटाओं में से कैलाश पर पदार्पण करेगी। लोक में मनो भावना वाणी द्वारा भी व्यक्त होती दिखाई देगी। सर्वत्र एक ही ध्वनि सुनाई देगी सत्यमेव जयते नानृतम सर्वत्र एक दूसरों को यही उपदेश करेंगे “असतो मा सद्गमय” असत्य की ओर नहीं सत्य की ओर चलिए। सत्य के विचारों का प्रचार जोरों से होने लगेगा। जब भगवान पृथ्वी पर उतर आवेंगे जब गंगा आगे बढ़ने लगेंगी तो गन्दे नदी नाले भी दौड़ कर उनमें मिल जायेंगे। भगवान गुह, शबरी, अहिल्या आदि का कल्याण करने के निमित्त स्वयं पैदल चल कर उन तक पहुँचेगी। खरे, निंदनीय और अभिमानी सागर को पवित्र करने के लिए गंगा स्वयं उस तक पहुँचेगी। पृथ्वी के दुष्ट कर्मी मनुष्य समय के प्रचंड प्रवाह को देख कर स्वयं बदल जावेंगे, जो जड़ बुद्धि वाले नहीं बदलेंगे उन्हें समय प्रवाह स्वयं हठात् परिवर्तित कर देगा। मन और वचन में दबी हुई अग्नि बहुत दिन दबी हुई नहीं रहेगी। जब पृथ्वी के अन्तःकरण में छिपी हुई अग्नि फूटती है, तो ज्वालामुखी प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। मन और वाणी में आया हुआ सत्य कार्य रूप में प्रकट होता है, तो आचरण भी सत्य के होते लगते हैं। जब सूक्ष्म सत्मय स्थूल रूप में भी प्रकट होने लगे तब समझना चाहिए कि निराकार परमात्मा साकार हो रहा है।

यह विश्वास करने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं, कि अब भगवान प्रकट होने वाले हैं। संवत् दो हजार से लेकर सौ वर्ष के अन्दर निष्कलंक भगवान पूर्ण रूप से अवतार ले लेंगे। लीला धारी नटवर पहले बाल गोपालों में क्रीड़ा करेंगे, बड़े होने पर तरुण तपस्वियों, श्रद्धालु भक्तों को प्रत्यक्ष सहायता देंगे और पूर्ण होने पर सत्य का शासन स्थापित कर देंगे। इस प्रकार प्रभु का यह अवतार होगा। एक हाथ से प्रेम का सुगन्धित पुष्प और दूसरे में न्याय की गदा लिए हुए भगवान् सत्य रूप निष्कलंक इस पृथ्वी पर दृश्य और अदृश्य प्रकट होंगे दृश्य उनके लिये जिनके विवेक की आँखें है। अदृश्य उनके लिए जिनको सभी नारकीय यातनाएं और सहनी हैं, रावण की तरह अपना सर्वनाश करने के पश्चात भगवत् शरण में आना है। भगवान दिखाई सबको देंगे, किसी को सुग्रीव की तरह प्रारम्भ में ही उनका स्वरूप देखने को मिलेगा। कोई बालि की तरह वाणविद्ध होकर भूमि पर लोटते हुए प्रणाम करेंगे।

बोलो निष्कलंक भगवान की जय!


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