इस्लाम और सतयुग

January 1942

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(चौदहवीं सदी में कयामत का आगमन)

‘माला बुद कब्लुत कयामत’ नामक एक अरबी पुस्तक में कयामत आने के पूर्व चिन्ह इस प्रकार बताये गये हैं- “निद्रा के अतिरिक्त जागृत अवस्था में किसी को शान्ति न मिलेगी। पूर्व वाले पश्चिम के प्रशंसक बनेंगे। स्त्रियाँ पुरुषों की बराबरी करेंगी। सोने से लोहा मूल्यवान होगा। चाँदी जैसी एक और धातु निकल आवेगी। हाट बाजार में बैठ कर खाना बुरा न समझा जायेगा। स्त्रियाँ जाल पर्दा छोड़ कर बाहर फिरेंगी। लोग दिन चढ़े तक सोया करेंगे। पक्षियों की तरह आकाश में उड़ना संभव होगा। अपने विचारों को जरा सी देर में दूर देशों को भेज देना सुगम होगा। खाने के लिए लोहे के हाथ होंगे चारपाइयाँ भी लोहे की होंगी। सवारियाँ ऐसी होगी जिनमें जान न होगी पर हजारों मील की यात्रा बहुत शीघ्र कर लेगी। माता-पिता का आदर न रहेगा, धर्म न रहेंगे और सूरज सवा नेजे पर आ जायेगा जिसकी रोशनी सब पसंद करेंगे।”

यह सभी बातें आज दिखाई दे रही हैं। बिजली की बत्तियों के द्वारा सूरज सवा नेजे पर आ गया है, जिसे? सब पसंद करते हैं।

मक्के के हमीदिया पुस्तकालय में “अल्कश्फ वल्कत्मफी मार्फत पुस्तक रखी हुई है। उसमें लिखा हुआ है कि “जिस समय फुट, कलह और व्यभिचार बहुत बढ़ जावेंगे तब एक पुरुष आवेगा। यह आध्यात्मिक शक्तियों से पूर्ण होगा। वह अग्नि के अस्त्रों को बेकार कर देगा। वह हर जगह विजय प्राप्त करेगा। उसे अपनी सेना कहीं ले जाने की आवश्यकता न होगी। आत्मशक्ति ही उसके लिए पर्याप्त होगी। दुनिया उसकी बात मानेगी। वह संसार को स्वर्ग बना देगा और बूढ़ों को जवान कर देगा।”

इसी प्रकार का विवरण ‘इमामें आखिकज्जमा’ ग्रन्थ में भी मिलता है।

इस्लाम धर्म की पुस्तकों के अनुसार संवत् 2000 के करीब कयामत आवेगी, कयामत का तात्पर्य यही समझना चाहिये कि “कोई पापी न रहेगा।” मदीने की प्रसिद्ध पुस्तक ‘मकसूम बुखारी’ में ऐसा उल्लेख है कि “हिजरी सन् की चौदहवीं शताब्दी की दूसरी तिहाई में कयामत होगी और हजरत मेंहदी प्रकट हो जायेंगे।”

प्रत्येक शताब्दी की एक तिहाई 33 वर्ष 4 मास की होती है दूसरी तिहाई 66 वर्ष 8 मास की हुई। संवत् दो हजार विक्रमी की श्रावण अमावस्या को हिजरी सन् 1363 के रजब महीने की 28 तारीख पड़ती है। इस प्रकार यह हिसाब भी हिन्दू धर्म पुस्तकों के अनुसार संवत् दो हजारी में कलियुग समाप्त होने के मत का समर्थन करता है।

योगी वहाउल्लाह ने एक स्थान पर कहा है-

“भूपतियों! एक सूत्र में बंध कर रहो। क्योंकि प्रेम से ही कलह का अन्धड़ शान्त हो सकता है और गरीब सुख शान्ति से रह सकते हैं अब वह समय पास ही है शीघ्र ही एक महान मनुष्य जाति का निर्माण होगा। और वह आपसी घृणा को छोड़ कर विश्व बन्धुत्व के सिद्धान्तों में बँध जायेगी।”


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