काँग्रेस और सतयुग

January 1942

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(ले. श्यामबिहारीलालजी रस्तोगी विहार शरीफ)

पाठकों को शायद यह जानकर आश्चर्य हो कि काँग्रेस का प्रोग्राम (कार्यक्रम) सतयुग लाने का था और है।

काँग्रेस का मुख्य ध्येय आरम्भ से ही यह रहा है कि सत्य, अहिंसा और प्रेम के मार्ग पर चल कर स्वराज्य प्राप्त करना। काँग्रेस के सर्वेसर्वा पूज्य महात्मा गाँधी जी ने स्वराज्य कैसा होना चाहिए इसकी व्याख्या करते हुए कहा था-

“स्वराज्य में राजा से लेकर प्रजा तक एक भी अंग अविकसित रहे ऐसा नहीं होना चाहिए, उसमें कोई किसी का शत्रु न हो सब अपना काम करें, कोई निरक्षर न रहे, उत्तरोत्तर सब के ज्ञान की वृद्धि होती जाये, सारी प्रजा में कम से कम बीमारियाँ हों, कोई भी दरिद्री न हो। परिश्रम करने वाले को बराबर काम मिलता रहे उससे जुआखोरी, मद्यपान, और व्यभिचार न हों, वर्ग विग्रह न हो धनिक अपने धन का उपयोग विवेक पूर्वक कर सकें- भोग विलास की वृद्धि करने में अथवा अतिशय संचित करने में नहीं। यह नहीं होना चाहिए कि मुट्ठी भर धनी मीनाकारी के महलों में रहे और हजारों अथवा लाखों लोग हवा और प्रकाश से रहित कोठरियों में।”

उपरोक्त इस व्याख्या पर यदि आप ध्यान देंगे तो आप को पता चलेगा कि संसार की ऐसी अवस्था सतयुग में ही होती है, इससे यह भली-भाँति स्पष्ट होता है कि महात्माजी जो कुछ भी कह रहे हैं, सतयुग आगमन के उद्देश्य से। आचार्य श्री जे. वी. कृपलानी जी का कथन है-

‘राजनैतिक डाक्टरों ने ठीक निदान नहीं किया था और उन्हें उस असल रोग का पता नहीं था जिससे देश को तकलीफ हो रही थी। रोग का कारण केवल राजनैतिक अधिकारों का आकस्मिक ह्रास ही नहीं था, क्योंकि ऐसा ह्रास तो प्रतिकूल संयोगों के मिल जाने से उस राष्ट्र का भी हो सकता है जो स्वस्थ और निरोग है। असल कारण तो राष्ट्र की जीवात्मा का दौर्बल्य था। एक मात्र राजनैतिक पराधीनता से ही हम नहीं गिरे बल्कि नैतिक, आध्यात्मिक तथा अन्य अनेक क्षेत्रों में हमारा पतन हो गया। इसलिए अगर देश को बचाना है तो यह काम केवल राजनैतिक प्रभुता को स्थानान्तरित करने भर से चाहे वह कितना भी महत्वपूर्ण न हो, नहीं हो सकता। इसका आधार अवश्य किसी भावना पर होना चाहिए, किसी ऐसे तत्व पर जो जीवन के मूल में परिवर्तन करने वाला हो इस प्रकार आन्दोलन आध्यात्मिक तथा आदर्शमय तो होगा ही।”

“गाँधीजी काँग्रेस के जरिये जिस आध्यात्मिक क्रान्ति को लाना चाहते हैं वह यही है। गाँधीजी की योजना में सत्य और अहिंसा केवल धार्मिक रूढ़ी भर ही नहीं हैं उन्हें तो राष्ट्र के जीवन तथा उसके चेष्टाओं में गूँथना होगा। बुराइयों से सफलतापूर्वक असहयोग करने के निमित्त पारस्परिक सहयोग की शिक्षा लेनी पड़ेगी। यह बिल्कुल सम्भव है कि गाँधीजी के समान या उनसे भी बड़ा दिमाग वाला व्यक्ति पैदा हो जाये और इन सिद्धान्तों को विभिन्न सिद्धान्तों और सुधार की योजनाओं में लागू करदे, लेकिन जब तक इन सिद्धान्तों को सिलसिले में लाने का इसमें अच्छा तरीका खोजा या काम में लाया नहीं जाता है तब तक तो गाँधीजी के रचनात्मक कार्यक्रम ही मैदान में अड़े रहेंगे।”

उपरोक्त बयान से यह स्पष्ट हो जाता है कि महात्माजी के सभी कार्य संसार में आध्यात्मिक क्रान्ति करने के लिए सतयुग लाने के लिए हैं, इस के लिये वह आध्यात्मिक और आदर्शमय आन्दोलन चलाना चाहते हैं।


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