(मित्र का मित्र के लिए आत्मयोग)
सिसली द्वीप का राजा डायोनीसियम अपने क्रोधी स्वभाव के लिए प्रसिद्ध था। एक बार पीथियस नामक युवक से अपराध बन पड़ा राजा ने उसे फाँसी का हुक्म सुना दिया। यह युवक अपने कारोबार के सिलसिले में सिसली रहता था पर वास्तव में वह यूनान का निवासी था। पीथियस ने राजा से प्रार्थना की कि मृत्यु से पूर्व मुझे अपनी मातृभूमि को एक बार देख लेने की इच्छा है। राजा ने उत्तर दिया कि - क्या भरोसा है कि तुम वापिस लौट आओगे। यदि तुम कोई अपना जमानतदार इसी फाँसी की कोठरी में छोड़ जाओ तो जा सकते हैं। नियत तिथि तक वापिस न आये तो तुम्हारे बदले उसे फाँसी लगा दी जायेगी। राजा जानता था कि मृत्यु से डरकर किसी भी आदमी का भाग जाना बहुत सम्भव है इसलिए इसे ऐसा कोई जमानतदार नहीं मिलेगा। इस प्रकार बात को टालने की यही सब से अच्छी शर्त है।
उत्तर को सुनकर युवक हताश हो गया वह जानता था कि ऐसा जमानतदार मिलना असम्भव है। वह पथराई हुई आँखों को नीची किए हुए पैर के अंगूठे से जमीन कुरेद रहा था कि दर्शकों में से एक व्यक्ति राजा के सामने उपस्थित हुआ। उसने कहा- मैं पीथियस का जमानतदार हूँ मुझे इसकी जगह बन्द करवा दीजिए। राजा को बड़ा अचम्भा हुआ, पर वह वचनबद्ध था। जमानतदार डेमन को कारागार में बाँध दिया गया और पीथियस को छोड़ते हुए उससे कह दिया गया कि एक महीने के अन्दर तुम्हें आ जाना चाहिए, नहीं तो ठीक आज के दिन डेमन को फाँसी दे दी जायेगी।
धीरे धीरे एक महीने पूरा हो गया और वह दिन आ पहुँचा जिस दिन सन्ध्या समय फाँसी दी जाने वाली थी। डेमन जानता था कि पीथियस सच्चा मित्र है, वह ईमानदारी को प्राणों से अधिक कीमती समझता है। प्रतिज्ञा करते करते सारा दिन बीत गया, डेमन को बाँधकर वध स्थल पर पहुँचा दिया गया। उसके गले में रस्सी बाँधी जा रही थी कि तीर की तरह दौड़ता हुआ पीथियस वहाँ आ पहुंचा। उसने दूर से ही चिल्ला कर कहा- ठहरिये, मैं आ गया। अधिकारी ठहर गये। वह बहुत जोर से हाँफ रहा था। पीथियस ने कहा “समुद्री तूफान ने मेरी नाव को इतनी देर लगादी। ईश्वर को धन्यवाद है कि मैं अपने वचन का पालन करने में समर्थ रहा। लीजिये, अब मैं मरने को तैयार हूँ।”
मित्रों की सच्ची मित्रता का आदर्श देखकर राजा का हृदय पिघल गया। उसने दोनों को मुक्त कर दिया और प्रार्थना की आप लोग मुझे भी अपना तीसरा मित्र बना लीजिए। सच्चे मित्र से बढ़कर और कोई मूल्यवान वस्तु इस संसार में नहीं है।