लोक वाणी

January 1942

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(“आवाज ए खलक को, नक्कारे खुदा समझो”)

उलट पलट की घोषणा।

“भविष्य में भारत को जिस विपुल तथा विराट् कार्यों का भार अपने ऊपर लेकर खड़ा होना पड़ेगा, उसकी सूचना स्वरूप सारे संसार में एक विचित्र प्रकाश का होना आरम्भ हो गया है। आगामी 30-40 वर्ष के भीतर संसार में एक विचित्र प्रकार का परिवर्तन होगा, सारी बातों में उलट पलट हो जायगी। उसके बाद जो नया जगत् तैयार होगा, उसमें भारत की सभ्यता ही संसार की सभ्यता होगी। भावी भारत का काम केवल भारत के लिए ही नहीं बल्कि समूचे संसार के लिए है। “

-योगी अरविंद घोष सन् 1918

अब कलियुग का अन्त हो रहा है और जीर्ण शीर्ण विचारों का ध्वंस हो रहा है। अब वह समय आ पहुँचा जबकि उन्नति और विकास के कार्यों को आरम्भ किया जाये ठीक यही समय आने वाले सतयुग की तैयारी करने का है।

-महात्मा अरविन्द घोष

(घशद्दड्ड ड्डठ्ठस्र द्बह्लह्य शड्ढद्भद्गष्ह्ल पुस्तक से)

मैं विश्वास करता हूँ कि निकट भविष्य में वह शुभ युग आने वाला है, जिसे राम राज्य कहना चाहिए।

-महात्मा गाँधी

मनुष्य जाति की अब अधिक अवनति नहीं होगी। ईश्वर की ऐसी इच्छा प्रतीत होती है कि अब संसार का पुनर्निर्माण हो और सब लोग धर्म कर्तव्यों का पालन करें।

-महामना मालवीय।

आज हम अँधेरे जमाने में होकर गुजर रहे हैं तो भी आने वाला कल उज्ज्वल है। हमें दिखाई दे रहा है कि भविष्य सूर्य की तरह प्रकाशवान् और चन्द्रमा की तरह शान्तिदायक होगा।

-माननीय राजगोपालाचार्य।

संशयात्माओं से मैं। पूछता हूँ कि यदि प्रकृति के गर्भ में सत् तत्व नहीं हैं तो प्राणघातक संघर्ष और विश्वव्यापी दारुण वेदना में से मनुष्यों को क्यों गुजरना पड़ रहा है? बीमारी के समय पीड़ा होती है यह इस बात का सबूत है कि स्वास्थ्य ही सत्य है। हमारा शरीर इस सत्य सिद्धान्त को मानता है इसलिए घोर प्रतिकार करके बीमारी को हटा बाहर निकालता है। यदि रोग के असत्य होने पर भी पीड़ा उत्पन्न न करता तो यह प्रकृति की भूल होती, पर ऐसा नहीं हैं। जब रोग प्रविष्ट हो जाता है तो सत् तत्व शरीर को प्रेरणा करता है कि दारुण दुख का खतरा लेकर भी वह असत् को हटा दे और तदुपरान्त सत- स्वास्थ्य को प्राप्त करें। आज सब तरफ युद्ध की बीमारी फैल रही है। मैं पूछता हूँ कि यह युद्ध कौन करा रहा है? इसका उत्तर है- प्रकृति के अन्तराल में छिपी हुई सत तत्व की वह सार्वभौम सत्ता जिसे कलि कल्मषों द्वारा हमने दबाया एवं अपमानित किया है।

-रवीन्द्रनाथ टैगोर।

मनुष्य समाज के उद्धार के लिए समय-समय पर इस देश और दूसरे देशों में भी महान् आत्माएं पैदा होती रही हैं। ऐसी आत्माओं को लोग अवतार कहते हैं। यह अवतार किसी एक विचारधारा भावना के प्रतिनिधि होते हैं इस युग में जिस भावना ने अवतार लिया है उसका नाम है- “समानता”। (स्शष्द्बड्डद्य द्गह्नह्वड्डद्यद्बह्लब्) उस भावना का प्रतिनिधित्व करते हुए अनेक आत्माएं प्रकट हो रही है। आइए। इस भावना रूप अवतार का सन्देश हम सुनें और उसका अनुसरण करें। ऐसा करने से मनुष्य समाज का जीवन पलट जायेगा और दुनिया मनुष्यों के लिए रहने के अधिक उपयुक्त हो जायेगी।

- पं. जवाहरलाल नेहरू।

भगवान को ऐसी पामर हालत में हमें नहीं रखना है। इसलिए वह हमारी सलामती हमसे छीन लेना चाहता है। कभी बाढ़ आती है, कभी भूचाल, कभी अकाल पड़ता है, की कभी बारिश की जगह धूप बरसती है। जहाँ धूप चाहिए वहाँ की घास सड़ने लगती है। प्लेग इन्फ्लुएंजा, हैजा, युद्ध हमारे पीछे पड़े हुए हैं। इसके मानी यही है कि भगवान् हमारा जीवन लम्पटता से बचाना चाहते हैं। हमसे कुछ न कुछ पुरुषार्थ कराना चाहते हैं। अगर हम इसके लिए मानसिक तैयारी करें तो भगवान् का संकल्प चरितार्थ करने का सौभाग्य हमें प्राप्त होगा। नहीं तो भगवान का दिया हुआ आखिरी मौका खो बैठने वाली जाति की जो दुरवस्था होती है, उसके लिए हमें तैयार रहना होगा। भगवान तो हमें अपने तरीके से जागृत करना चाहते हैं वह हमें जीवन क्रान्ति की शिक्षा दे रहे है। इससे हमारी नींद टूट जायेगी, आदतें सुधर जायेंगी, अपनी निज शक्ति को हमें अनुभव होगा और हम आजाद होकर दुनिया की कुछ सेवा कर सकेंगे। यह सब समय पर इतनी ही हमारी प्रार्थना हो सकती है, जिससे हमारी नींद टूटे। हमारी सब शक्तियों से हमें परिचय हो और हम अपने व्यक्तित्व को ग्रहण कर सकें। -काका लालोकर

सूरदार का प्रसिद्ध पद।

अरे मन धीरज क्यों न धरे॥

मेघनाथ रावण को बेटा से पुन्में जन्म धरे।

पूरब पश्चिम उतर दक्षिण प्रदेश काल पर॥

अकाल मृत्यु जगमाही व्यते बहुत मरे।

एक- एक को ऐसा नहीं वीट करे॥

एक सहसत्रा नौसे से, योग परे।

सहस वर्ष लो सतयुग बीते, बेलि बढ़े॥

नीति धरम सुख, आनन्द उपजे पुनि जग दशा फिरे। सूरदास यह हरि की लीला टारे नाहिं टरे॥


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