काम करो! काम करो!!

January 1942

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(ले. श्री मंगलचंद भंडारी “मंगल” विशारद, अजमेर)

एतरेह ब्राह्मण में कहा गया है कि-

कलिः शयानों भवति, संजिहानस्तु द्वापरः।

उतिष्ठन्त्रेता भवति, कृतं सम्पद्यते चरन्।

चरैवेति, चरैवेति, चरैवेति॥

अर्थात्- सोते रहना ही कलियुग है। ऊँघते रहना ही द्वापर है। उठ बैठना त्रेता है और कार्य में लग जाना सतयुग है। इसलिए काम करो, काम करो, काम करो।

युगों की यह परिभाषा बहुत ही ठीक जान पड़ती है। जब हम अज्ञान के अंधकार में पड़े हुए आलस्य और भ्रममय जीवन व्यतीत करते हैं, तो वह। कलियुग है। जब हम अपनी दशा का निरीक्षण करते हैं, भूल पर पछताते हैं, आगे की सुधि लेते हैं, कर्तव्य का सम्मान करते हुए ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील होते है, तो वह द्वापर है। जब कर्तव्य धर्म का पालन करने के लिए कमर कस कर खड़े हो जाते हैं। विघ्न बाधाओं की परवाह न करते हुए, साहस के साथ आगे को कदम बढ़ाते हैं बुराई का घृणा पूर्वक परित्याग करते हुए सत्य रूपी सूर्य का दर्शन करने की तैयारी करते है, तो वह त्रेता हुआ। जिस समय कर्तव्य, धर्म को पूरा करने के लिए मनुष्य बेचैन हो जाता है। सत्य के सामने प्राणों को भी तुच्छ समझता है। आलस्य, जड़ता और अज्ञान का परित्याग करके धर्म का पालन करता है विषय विकारों से मन को हटा कर आत्मा और परमात्मा की ओर झुकता है, तब समझना चाहिए कि सतयुग का उदय हो रहा है।

युगों का यह प्रभाव सम्पूर्ण देश और जातियों में सदैव देखने में आता है। कुछ लोग कलियुग में पड़े हुए हैं, तो कुछ द्वापर में पदार्पण कर रहे हैं। कोई त्रेता तक पहुँच चुका है, तो किसी ने सतयुग में पदार्पण कर दिया है। यह सब युग सदैव वर्तमान रहते हैं, जिसकी जैसी इच्छा होती है, रुचि के अनुसार चुन लेता है। हाट में सभी तरह की चीजें बिक रही हैं जिसके जी में जो आवे खरीद सकता है। बेशक हाट में गाजर मूली ढेरों है और केशर कस्तूरी कम, पर चाहने वाले को तो उसकी इच्छित चीज मिल ही सकती है। चाहे कोई सा भी देश काल क्यों न हो, सत्पथगामी के लिए अपना आचरण करने की सदैव सुविधा है।

युग शब्द समय का सूचक नहीं, हमारी समझ से तो वह मनोदशा का परिचय कराता है। अज्ञानी और अधर्मरतों को ही कलियुगी जीव कहा जा सकता है। जिनकी आत्मा जागृत हैं वे क्यों कलियुगी कहे जाएंगे? सतयुग एक दिव्य आदर्श है, जो लोग उस शुभ समय को देखने की इच्छा करते हैं वे इस ऋषि वचन को अपनाते हैं कि चरैवेति, चरैवेति, चरैवेति, अर्थात्- काम करो! काम करो!! काम करो!!! सतयुग अपने आप दौड़कर हमारे पास कभी भी नहीं आवेगा, उसके प्राप्त करने के लिए हमें भगीरथ प्रयत्न करना पड़ेगा। उद्योगी पुरुषों को ही लक्ष्मी मिलती है और उद्योगी ही सतयुग का आनन्द लेते हैं, इसलिए सत् धर्म की ओर बढ़ो ज्ञान प्राप्ति का प्रयत्न करो, नवीन युग लाने का उद्योग करो। काम करो! काम करो!! काम करो!!!


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