सत्य की साधना

February 1941

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(ब्रह्मर्षि श्री सत्यदेव जी महाराज)

दिन के कार्य समाप्त करके रात्रि में शय्या पर शयन करते समय एक बार स्मरण कर देखो कि दिन में कोई झूठी बात कही वा मिथ्या व्यवहार तो नहीं किया है। यदि न हुआ हो तो कृतज्ञतापूर्वक भगवान को धन्यवाद देकर कहो- “प्रभो ! आपकी कृपा से मैं आज सत्य की रक्षा कर सका हूँ, आप मेरा भक्ति हीन प्रणाम कीजिए, जिससे, मैं प्रतिदिन इस भाव से आपकी कृपा का अनुभव कर सकूँ।”

और यदि दिन रात में कोई झूठी बात कही गई हो तो अनुतप्त हृदय से, कातर प्रणाम से प्रार्थना करो-’प्रभो ! आज मैं सत्य की रक्षा नहीं कर सका हूँ, आप मुझे क्षमा करें, भविष्य में फिर कभी असत्य के मार्ग पर नहीं चलूँगा। आप सत्य हैं, सत्य ही आपका स्वरूप है, आप सत्य के सारथी हैं, सत्य ही आपका नाम हैं, तब आपका नाम स्मरण करके भी हम झूठ क्यों बोल जाते हैं? हमारी रक्षा कीजिए, हमें सत्य परायण कीजिए।’

आग्रह पूर्वक कुछ चेष्टा करते करते सत्य बात कहने का अभ्यास हो जाएगा। जब तक सत्य-मय स्वभाव न हो जाय तब तक होशियार रहना पड़ता है, कारण कि चिरकाल से झूठ बोलते बोलते मनुष्य ऐसी अवस्था में पहुंच गये हैं कि अनजान हूं दशा में अनेक बार झूठ बोल जाते हैं और उनको मालूम भी नहीं पड़ता, इस कारण कुछ दिन इस प्रकार अनुशीलन व साधना करनी चाहिए।

प्रातः काल जब आप सोकर उठें, कई बार ‘सत्यं परं धीमहि’ मन्त्र का पाठ कीजिए और सच्चे हृदय से ईश्वर प्रार्थना कीजिए कि-हे प्रभो आप हमें इस प्रकार चलाइये कि जिससे आज दिन रात में एक बार भी झूठ न बोलना पड़े।

इस प्रकार आप दिन दिन सत्य की ओर बढ़ते जायेंगे और एक दिन अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे।


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