(ठा॰ रामकरणसिंह वैद्य, जफ रापुर)
मनुष्य के हृदय में पाप वृत्तियाँ जब प्रवेश करती है, तो बहुत धीरे-धीरे आती हैं। उनका आगमन ऐसी मंदगति से होता है, कि हमें उनका पता भी नहीं लग पाता और जब वे पूरी तरह कब्जा कर लेती हैं, तब कुछ ज्ञान होता है। चूहे को पकड़ने के लिए बिल्ली बहुत धीरे-धीरे कदम बढ़ाती है, मछली को निगलने के लिये बगुला बहुत ही सावधानी से पाँव धरता है और जब अपने शिकार को बेखबर देखा कि चट कर जाते हैं, फिर उनके मुँह में से निकल भागना मछली या चूहे के लिए बहुत कठिन होता है।
असंख्य भले आदमी बुराइयों के शिकार हो जाते है। पहले उनके हृदय बहुत शुद्ध थे, पापों से घृणा करते थे, किन्तु जब उनके मन में धीरे धीरे दुष्ट वृत्तियाँ घुसने लगीं, तो वे जागरुक न थे, वे बेहोशी में पड़े रहे, इधर वे विकार मन में धीरे-धीरे बढ़ते रहे, परिणाम यह हुआ कि दिन उनके समस्त गुणों को हटा कर बुरे विचारों ने अपना कब्जा कर लिया, वे मन ही मन पुराने अच्छे जीवन को प्राप्त करने के लिये तड़पते हैं, पर लाचार हैं, बुरी आदतों ने उनके ऊपर अपना पूरा अधिकार कर लिया है, पूरी तरह गुलाम बना लिया है।
इसलिए जो लोग अपने जीवन को पवित्र और निर्मल बनाये रखना चाहते हैं, कि वे प्रति दिन सोने से पूर्व आत्म निरीक्षण कर लिया करें, आज क्या बुराई हमने की ? आज क्या बुरे विचार हमारे मन में आये ? इन दोनों प्रश्न के उत्तर खूब बारीकी से ढूंढ़ने चाहिए और जो बुराइयाँ हुई हों, उनके लिये ईश्वर से क्षमा माँगते हुए दूसरे दिन सावधान रहने की प्रतिज्ञा करनी चाहिये । इस प्रकार यदि रोज आत्म-निरीक्षण का क्रम जारी रखा जाए , तो हम उन समस्त पापों से बच सकते हैं, जो पहले चुपके चुपके आते हैं और अन्त में नष्ट कर डालते हैं।