जो अपनी पाशविक वृत्तियाँ जागृत करके दैवी वृत्तियों को दबा देता है, उसके मानव होने के केवल यही प्रमाण रह जाता है कि दूसरे मनुष्यों की तरह दो हाथ पैर हैं।
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हम सुख चाहते हैं। सुख का मूल्य चुकाओ, बिना चुकाये वह किस प्रकार मिल सकता है। हलुवा खाने से पहले कोयले में काले हाथ करके आग जलानी पड़ती है।
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जो संसार को दुख देने के लिए अवतीर्ण नहीं हुए, वरन् सुख की नदियाँ बहाने के लिए आये, वे मृत्युलोक में मनुष्य रूप में देवता हैं।