(श्री॰ आनन्दकुमार चतुर्वेदी ‘कुमार’ छिवरामऊ)
किसी गाँव के बाहर रास्ते के किनारे एक बड़ा विषधर सर्प रहता था। उस मार्ग से निकलने वाले मनुष्यों को डस लेता था, इस कारण उसके भय से उस मार्ग से लोगों का आना जाना बन्द हो गया। संयोगवश एक दिन एक महात्मा उस गाँव में पधारे, लोगों ने उनकी सेवा-शुश्रूषा की । जब वह महात्मा उस मार्ग से जाने लगे , तब लोगों ने उनको रोका और निवेदन किया कि महाराज इस रास्ते में एक बड़ा विषधर सर्प रहता है, जो सबको काट लेता है। इस पर महात्मा ने उत्तर दिया, हम निर्भय हैं, हमारा साँप कुछ नहीं कर सकता, महात्मा उसी मार्ग से चल दिये। सर्प महात्मा को देखकर फुंसकार देता हुआ उनकी ओर दौड़ा, महात्मा ने थोड़ी सी मिट्टी उठाकर मन्त्र पढ़ कर उस पर फेंकी, सर्प वहीं स्थगित हो गया। इसके पश्चात् महात्मा ने उसके पास जाकर उसको उसके पिछले जन्म का ज्ञान कराया और कहने लगे कि तू अपने पिछले जन्म में लोगों को अत्यन्त कष्ट देता था, इससे तुझको सर्प योनि मिली, अब भी तू नहीं मानता है और लोगों को कष्ट पहुँचाता है, तू सबको डसना छोड़ दे, जिससे तुझको भविष्य में अच्छी योनि मिले। सर्प ने कहा जो आज्ञा, अब मैं भविष्य में किसी को नहीं काटूँगा।
महात्मा सर्प को उपदेश देकर चले गये, सर्प ने उस समय से मनुष्यों को डसना बन्द कर दिया। अब तो उस सर्प को सब लोग तथा बच्चे बहुत तंग करने लगे, कोई उस पर पैर रख निकल जाता, तो कोई उसे लकड़ी से उठा कर फेंक देता, बालक उसको पूँछ पकड़ कर घसीटने लगे, साराँश यह कि सर्प अत्यन्त निर्बल हो गया, उसको अपना भोजन ढूंढ़ना भी कठिन हो गया था।
कुछ दिनों बाद उस मार्ग से फिर वही महात्मा निकले तथा देखा कि सर्प अत्यन्त निर्बल तथा दीन दशा में पड़ा है। सर्प से महात्मा ने प्रेम तथा दया से पूछा-तेरी ऐसी दशा क्यों हो गई? सर्प ने उत्तर दिया कि आपकी आज्ञा मानने से।
जिस दिन से आपका उपदेश सुना, मैंने सबको डसना बन्द कर दिया, परिणाम यह हुआ कि मनुष्य तथा बालक सभी ही मुझको तंग करने लगे, यहाँ तक कि मुझको अपना भोजन ढूँढ़ना भी कठिन हो गया। इस पर महात्मा ने सर्प से कहा कि मैंने तुझको काटने के लिये मना किया था, न कि फुंसकार देने के लिये।
आज हिन्दू समाज की ऐसी ही दशा हो गई है। धार्मिक विचारों के कारण वे अपने को हानि पहुँचाने वाले गुण्डे, बदमाश, आततायी लोगों का भी विरोध नहीं करते। फल स्वरूप हिन्दू स्त्रियों तथा बालकों का अपहरण , साम्प्रदायिक दंगों में हिन्दुओं की अधिक हानि आदि दृष्टिगोचर होते हैं। हमें किसी पर आक्रमण नहीं करना चाहिये, पर अपने ऊपर होने वाले हमलों से बचाव के लिए शक्ति-सम्पन्न जरूर रहना चाहिये, जिससे हर कोई मीठा गुड़ समझ कर चट न करने लगे।