दानी होने से पहले विचारवान होना आवश्यक है, बिना विचारे दान देना धन का दुरुपयोग करना है।
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अनेक धर्माचार्य सच्चे तो होते हैं पर उनमें उदारता की कमी रहती है। उनसे बढ़कर सख्त मिज़ाज और भुक्खड़ दूसरा न होगा।
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वही व्यक्ति विवेक मय है जो भविष्य से न तो आशा रखता है और न उससे भयभीत होता है।
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जो मनुष्य कभी गलती नहीं करता वह संसार में कुछ भी कर सकेगा, इसमें सन्देह है।
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बुरे प्रभावों से बचना, उनका प्रतिकार करना, इसी का नाम संयम है, जो मनुष्य में योग्यता पैदा कर उसे प्रभावशाली बनाता है।