उलाहना

February 1941

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(श्री भगवानस्वरूप वर्मा ‘शूल’ आन्तरी)

निशि बासर याद करें तुमको,

फिर भी तुम दर्श दिखाते न हो।

कलपाते हुए निज भक्त को देख के

कैसे प्रभो, कलपाते कहो ?

किस भाँति पुरानी प्रतीत को नाथ,

बिसारतें, डारते, जाते अहो !

हम दारिद्र, दीन, मलीन रहें,

सुर-स्वर्ग में आप विराजे रहो!!


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