(श्री भगवानस्वरूप वर्मा ‘शूल’ आन्तरी)
निशि बासर याद करें तुमको,
फिर भी तुम दर्श दिखाते न हो।
कलपाते हुए निज भक्त को देख के
कैसे प्रभो, कलपाते कहो ?
किस भाँति पुरानी प्रतीत को नाथ,
बिसारतें, डारते, जाते अहो !
हम दारिद्र, दीन, मलीन रहें,
सुर-स्वर्ग में आप विराजे रहो!!