मैं परलोकवादी कैसे बना?

February 1941

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(ले॰ श्री वी॰ डी॰ ऋषि बम्बई)

जब मैं स्वयं लेखन के प्रयोग कर रहा था, तो मुझे इंग्लैंड में मि॰ बुश का एक तार मिला कि कुछ दिनों के लिये स्वयं लेखन के प्रयोग बन्द कर दीजिये । मैंने उनके आदेशानुसार वह प्रयोग बन्द कर दिये। कुछ दिनों के बाद मेरी स्वर्गस्थ स्त्री ने मि॰ बुश को संदेश द्वारा कहा, कि स्वयं लेखन के प्रयोग बन्द क्यों कर दिये हैं? इन्हें फिर जारी कर दिया जाये। इसका कारण यह बताया गया, कि मेरी स्वर्गस्थ पत्नी मुझसे बातचीत करने के लिये बड़ी उत्सुक है। इसलिये मैंने स्वयं लेखन के फिर प्रयोग आरम्भ किये। तब से मैं निरन्तर रूप से प्रति दिन अपनी पत्नी से बात करता हूँ। उनसे मुझे अनेक सन्देश मिले हैं। इसका कारण भी उन्होंने यह बताया, कि मेरा उन पर अगाध प्रेम है।

इस सम्बन्ध में मि॰ बुश ने मुझे 30 वीं मार्च को एक पत्र में लिखा-’28 वीं मार्च की सन्ध्या को साढ़े सात बजे मुझे एक आश्चर्यजनक अनुभव हुआ। मेरी सारी पीठ जलने लगी मालूम होता था, कि कोई गर्म प्रवाही वस्तु मेरी पीठ में लगा दी गई हो । आपकी जब पत्नी आती है, तब मुझे ऐसा ही अनुभव हुआ करता है। मैंने मन में प्रश्न किया ‘क्या श्रीमती ऋषि पत्नी हैं?’ इस प्रश्न के उत्तर में मेरे घुटने पर रखे हुए हाथ ने तीन ठोंके मेरे घुटने पर मारे, अर्थात् “हाँ, हाँ”। मैंने उनका मन ही स्वागत किया और कुछ देर तक मन ही मन बात-चीत भी करता रहा। मैं मन में उनसे प्रश्न करता और वे मुझे हाँ- न, के ठोंके मार कर बता देती थी। मैंने उनसे पूछा, कि मैंने ऋषि जी को स्वयं लेखन के प्रयोग करने की स्वीकृति दे दी थी, क्या आप श्रीमती ऋषि जी बात-चीत करती हैं? उन्होंने उत्तर में कहा, ‘हाँ’ । इस उत्तर के बाद आपका पत्र मिला। मैंने अनुमान किया, कि यह आपके पत्र के साथ ही आई हैं।

इंग्लैंड में आत्माओं को प्रत्यक्ष देखने वाले एक मीडिया को भी मेरी स्त्री दिखाई दी थी। इस सम्बन्ध में मि॰ बुश ने मुझे 28-11-21 के पत्र में लिखा,- ‘हमारे प्रयोगों में आपकी पत्नी आयी थीं। एक मीडिया ने उसे दो बार देखा। एक बार उनकी आत्मा ने बेहोश मीडिया में प्रवेश कर कुछ बात-चीत भी की थी। मालूम होता था, कि अभी आपकी पत्नी के विचार प्राचीन रूढ़ि के हैं। मालूम होता है, कि प्राचीन रूढ़िवादी आत्माओं का उन पर अधिक दबाव है। यह एक अच्छी आत्मा हैं, किन्तु पुराने रूढ़ि के विचारों से वे मुक्त नहीं हुई।

आपकी स्त्री के फोटो से ऐसा देख पड़ता है, कि वे सुन्दर स्त्री और सुन्दर आत्मा रही हैं। आप यह पढ़ कर चकित होंगे, कि इनके संवाद प्राप्ति में जो विक्षेप पड़ता है, उससे भी उन्हें लाभ पहुँचता है। आपकी पत्नी आत्म उन्नति के लिये विशेष रूप से तैयार हैं। इनमें अनेक सद्गुण हैं, किन्तु इनकी आत्मिक उन्नति जीवन काल में परिपक्व नहीं हुई थी, आप शान्ति से ध्यान करो और नये सिद्धान्त ग्रहण करने को सदैव तैयार रहो। फिर भले ही यह नये सिद्धान्त कट्टरपन्थी हिन्दुओं को विसंगत ही क्यों न मालूम पड़ें। आपकी पत्नी के जो विचार जीवनकाल में थे, वही अब भी है। उनकी दिनचर्या में विशेष कोई अन्तर नहीं पड़ा। जिस देवता की पूजा वे परलोक में भी करती हैं। परन्तु अभी इनकी आत्मा की उन्नति नहीं हुई, अचानक परिवर्तन की आशा भी न करना चाहिये। शान्ति और स्वच्छ हृदय से व्यवहार करो।’

इसके उपरान्त जब मैं सन् 1925 और 1928 की अन्तर्राष्ट्रीय परलोक विद्या परिषद में इंग्लैंड गया , तो मेरी पत्नी वहाँ मीडियमों को दिखाई दी। एक पेरिस की मीडिया ने भी उन्हें देखा। मैंने वहाँ अपनी पत्नी की आवाज ट्रम्पेट द्वारा सुनी। एक प्रयोग में उनका फोटो भी आ गया । स्वयं लेखन द्वारा मुझे अपनी पत्नी श्री सुभद्रा देवी से कितने ही संदेश प्राप्त हुए हैं, जिनसे जीवन की पिछली घटनाओं पर प्रकाश पड़ता है। इन संदेशों से यह पता लगता है, कि मेरी पत्नी की कितनी अधिक स्मृति है और उनका कितना अधिक प्रेम है। उनकी बताई हुई कुछ बातों का उदाहरण नीचे देता हूँ। ‘क्या तुम्हें उन पत्रों की याद है, जो मैं तुम्हें बंगले से लिखा करती थी?”, ‘मैंने तुम्हें आपरेशन करवा देने के लिये कितना जोर देकर कहा था”। ‘जिस प्रकार मैं बंगले में एकान्तवास करती थी, उसी प्रकार मुझे एकान्तवास करने की आवश्यकता है’।” “मैं कहा करती थी, कि मेरे पत्र दुनिया को दिखा दो।” ‘जब हम लोग बम्बई रहते थे तब मैं नित्य कुछ मिठाई बनाया करते थे।’ ‘हम लोग नित्य दूर तक घूमने जाया करते थे।’ ‘आप मेरी इच्छा की जरा भी चिन्ता न करते थे।’ मीरज में हम लोग जिस घर में रहे थे, उसमें आँगन नहीं था। विवाह के समय मैं कितने ही लोगों को पसन्द नहीं आई थी । मेरे पेट में व्याधि थी, उसका फोटो एक्सरे गक्रड्डब् से बम्बई और मीरज में लिया था । मेरा स्वभाव तेज था। मैं जरा भी अपमान नहीं सह सकती थी। मैंने जो कविता बनाई थी, वह क्या आपको याद है? एक दिन मैं गुटकेश्वर मन्दिर के कुएं के पास सो गई थी। क्यों आपको उन लड्डुओं की याद है, जो मैंने मीरज में बनाये थे। उसमें से एक लड्डू तो वर्षा तक ट्रंक में रहा था। मैं अपना समय पूजा पाठ में व्यतीत किया करती थी, इसके लिये कुछ लोग विरोध भी करते थे। मेरी पुरानी चीजें अब एक भी नहीं रहीं, दूसरे लोगों ने उन्हें फेंक दिया होगा, इत्यादि।


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